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________________ ४०८ ४०८ ४०८ ४०६ ४०६ ४१० (१०) रागमन । विषय कषायों को छोड़ने का उपदेश । इच्छा पूरी कर कंकण-हस्त ही प्रव्रज्या ग्रहण की प्रतिज्ञा। १९. सुरपति द्वारा चिन्तामणि रत्न का दान । उसके प्रभाव से क्षीरोदधि का प्रवाह । सब लोगों की त्राहि त्राहि पुकार । प्रवाह का नियंत्रण २०. राजकन्या तिकलासुन्दरी तथा अन्य बत्तीस कन्याओं का परिणय व सुख भोग । साधु द्वारा प्रतिज्ञा का स्मारण । बारह वर्ष सुख भोगने की याचना । २१. सुरपति की स्वीकृति । बारह वर्ष पश्चात् पुनः स्मरण कराने पर अन्य बारह वर्षों की याचना । स्वीकृति । तीसरी बार स्मरण कराने पर मेदार्य का कोप । देवमुनि की चिन्ता। २२. अन्य दिन मेदार्य का रूप धारण कर सुरपति का गृह-प्रवेश । मेदार्य का राज कुल से प्रागमन । दोनों में विवाद । राजा से न्याय की याचना । राजसभा में दोनों उपस्थित । २३. माया मेदार्य द्वारा उपाय प्रस्तुत-जो कोई राजा व मेदार्य दोनों की कुल पर म्परा जाने वही सच्चा । सच्चे मेदार्य का प्रज्ञान । सुर द्वारा अरिंजय से लगा कर वर्तमान हरिवाहन नरेश तक की संतति का व्याख्यान । २४. अपने कुल का मनु से लगाकर स्वयं तक का विवरण । राजा की प्रतीति व मेदार्य की लज्जा । प्राणदंड । श्मशान में शूली के समय उसी देव का आगमन । २५. देव द्वारा पुनः बारह वर्ष के सुख का प्रस्ताव, मेदार्य की अनिच्छा व तत्काल दीक्षा की मांग । देव द्वारा जाकर राजा से मेदार्य की मुक्ति की प्रार्थना व वृत्तान्त निवेदन । २६. मेदार्य का श्मशान से प्रानयन, सम्मान, तथा सुर द्वारा फडहस्त से लेकर अब तक का विवरण । सबकी धर्मरुचि । मेदार्य, उसकी पत्नियों तथा राजा और सामन्तों का तप-ग्रहण । २७. मेदार्य का एक विहारी होकर कौशाम्बी प्रागमन । राजा गन्धर्वसेन, सुनार अंगारवेग द्वारा मुनि की पड़िगाहना व घर के भीतर गमन । इसी बीच राजा के मुकुट के एक रत्न का क्रौंच पक्षी द्वारा मांस पिंड जानकर निगला जाना। २८. सुनार के पूछने पर मुनि का मौन । सुनार द्वारा मुनि की मारपीट । एक प्रहार उस पक्षी को लगने से मणि का मुख से पतन । मुनि का पर्वत पर जाकर प्रतिमा योग। २६. मुनि को गुणस्थान-क्रम से केवलज्ञान प्राप्ति । देवों द्वारा वंदना उज्जयिनी नरेश का प्रव्रज्याग्रहण । कौशाम्बी नरेश द्वारा उपसर्ग के कारण की पृच्छा। मुनि द्वारा फडहस्त और गरुड़दत्त के जन्म-जन्मान्तर द्वेष का संक्षिप्त वर्णन । प्रथम के नाग, हस्ती और क्रौंच तथा दूसरे का कंकजंघ । ३१. कीचक के आगे केंकड़े करभ, भवदेव और मेदार्य का तथा द्वितीय के धीवर, तुरग और अंगारदेव सुनार का जन्म । ४११ ४१२ ४१२ ३०. ४१३ ४१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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