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________________ २१. सर्पदंश से महादेवी की मृत्यु । राजा द्वारा रोष से निर्विष डुडुभों का भी सत्या नाश । इसी प्रकार कौशाम्बी के मेदार्य मुनि ने माणिक्य के निमित्त दुख सहा, तो भी चोर क्रौंच की बात न कही । इसी प्रकार दूसरे के द्वारा ग्रहण की गयी वस्तु की बात हमें कहना उचित नहीं । वणिक् का निरुत्तर होकर मौन । २२. पुत्र द्वारा अपहरण स्वीकार व धन-प्रदर्शन । वणिक् का पश्चात्ताप । प्रव्रज्या। स्वर्गारोहण । ३६८ ३९८ पृष्ठ २. ३३१ ४०. ४०० संधि-४१ कडवक १. धन के निमित्त दुःख प्राप्ति पर पिन्नाकगंध की कथा। पांचाल देश, काम्पिल्यपुर, रत्नप्रभ राजा, विद्युत्प्रभा रानी । जिनदत्त सेठ । पिनाकगंध वणिक, विष्णुदत्त पुत्र । राजा का तालाब खुदवाना। लाखों कुदाली चलाने वालों में से एक को लोहे से मढ़ी सौ सुवर्ण शलाकाओं की प्राप्ति । जिनदत्त द्वारा एक का क्रय व उससे जिन-प्रतिमा का निर्माण । दूसरी बार कुशी लाने पर जिनदत्त द्वारा अस्वीकार । पिन्नाकगंध द्वारा क्रय व अन्य सभी पाने की इच्छा। एक-एक दो-दो प्रतिदिन लेकर निन्यान्नवे का ग्रहण । भानजी के विवाह में वणिक् का गमन । पुत्र द्वारा रोष । एक कुशी का अस्वीकार । राजपुरुष द्वारा राजनामांकित देख कर राजा से निवेदन । खनक से पूछताछ । एक जिनदत्त को व अट्ठानवे पिन्नाकगंध को देने का वृत्तान्त । जिनदत्त द्वारा प्रतिमा प्रस्तुत । ४. जिनदत्त को क्षमा-प्रदान। पिन्नाकगंध का बत्तीस कोटि धन ग्रहण व पुत्र को सकुटुम्ब कारावास । वृत्तान्त सुनकर वणिक् का आत्मघात व नरक गमन । ५. धन लोभ पर फडहत्थ वणिक् की कथा । चम्पापुर, अभयनरेश, पुंडरीका रानी, मूढ़ वणिक, दो पुत्र गरुड़दत्त और नागदत्त । सब जीवों के रत्नमय जोड़ों का सेठ द्वारा निर्माण । वृषभ के लिये उपयुक्त काष्ठ की खोज में मेघाच्छादित अंधकार में गंगा के पूर से काष्ठ ग्रहण करते हुए रानी द्वारा देखा गया। अपने नगर में ऐसे दरिद्री को देख देवी का राजा से निवेदन । सेठ का प्रागमन व अपने एक वृषभ का जोड़ पाने की इच्छा का निवेदन । राजा की गोकुल से लेने की अनुज्ञा । अपने वृषभ समान वहां न पाने का निवेदन। उसके अद्भुत वृषभ को देखने राजा का सेठ के घर गमन व यक्ष, भुजंग, विहंग आदि सभी प्राणियों की मूर्तियां देखकर राजा का विस्मय । राजा को रत्नों का थाल अर्पित करते समय उसके हाथ की छिन्न अंगुलियों को देखकर वणिक् को 'फटे हाथ' की उपाधि प्रदान । फडहस्त सेठ का लोभ । वाणिज्य हेतु ताम्रलिप्ति, सुवर्ण भूमि, कलशपुर, सिंहलद्वीप आदि द्वीपों का बारह वर्ष भ्रमण । बहुधन अर्जित कर सिंध देश जाते समय नौका नाश से मृत्यु । सर्प का जन्म पाकर द्रव्य के समीप संचार । पुत्र द्वारा वध । लघु पुत्र और सेठानी का धर्मविधि से स्वर्गवास । . ४०० ४०१ ४०१ ४०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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