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________________ ३६४ १३. ३६४ ३६५ ३६५ ( ८७ ) ११. वराड देश, पद्मपुर, वसुपाल नरेन्द्र । कौशल नरेश के दूत की वन में तृष्णा से मूर्छा । कपि द्वारा जलदान । दूत द्वारा उठकर कपि का वध, चर्म-ग्रहण व जल भरकर गमन । दूत के अपने उपकर्ता के प्रति अयोग्य पाचरण की मुनि द्वारा भी निन्दा। १२. मुनि द्वारा दूसरी कथा । कौशाम्बी नगरी । शिवशर्मा ब्राह्मण। पुत्रहीन । नकुल का पालन । पुत्रोत्पत्ति । ब्राह्मणी का जल लेने जाना । सर्प द्वारा पुत्र का घात । नकुल द्वारा सर्प-घात । ब्राह्मणी का मृत-पुत्र दर्शन ।। नकुल पर संदेह कर बिना परीक्षा वध । इस अनौचित्य का वणिक् द्वारा समर्थन।। १४. जिनदत्त द्वारा तीसरी कथा । वाराणसी के जितशत्रु राजा का धनदत्त वैद्य । दो पुत्र धनमित्र और धनभद्र । दोनों मूर्ख । धनदत्त की मृत्यु । पुत्रों का चन्द्रपुरी गमन व शिवभूति के समीप वैद्यविद्या का अध्ययन । घर लौटते समय वन में अन्धे व्याघ्र का दर्शन । कनिष्ठ भ्राता द्वारा व्याघ्र के उपचार का प्रस्ताव। १५. धनदत्त द्वारा अनिष्ट की आशंका व वृक्षारोहण । धनभद्र द्वारा व्याघ्र को दृष्टिदान । व्याघ्र द्वारा उसका घात । मुनि द्वारा अनौचित्य का समर्थन । मुनि द्वारा चौथी कथा । चम्पापुर में शिवशर्मा विप्र । १६. भार्या सोमिल्ला सपुत्रा । उसकी सौत सोमशर्मा ईर्ष्यालु । सौत के पुत्र को मार कर नगर सांड के सींग में छेदन । सबके द्वारा सांड की निन्दा । सांड द्वारा तप्त लोह मुख में लेकर अपनी दिव्य परीक्षा। बिना परीक्षा लोक द्वारा सांड की निन्दा के अनौचित्य का जिनदास द्वारा समर्थन व पाँचवी कथा । गंगानदी१७, गड्ढे में पड़े हाथी को लाकर आश्रम में पालना । उस भद्रजाति के गंध हस्ति की ख्याति सुनकर श्रेणिक नरेश द्वारा प्राप्ति । बंधन तोड़कर तीन बार पुनरागमन । तपस्वी द्वारा वापिस किये जाने पर हस्ति द्वारा रोष से तपस्वी का घात । मुनि द्वारा हस्ति की कृतघ्नता की निन्दा। १८. मुनि द्वारा छठी कथा । गजपुर के राजा विश्वसेन का आम्रवन प्रारोपण । प्रथम फल में सर्प के विष का प्रवेश । राजा द्वारा महादेवी को अर्पण । खाकर प्राणान्त । रुष्ट नरेश द्वारा समस्त आम्रवृक्षों का छेदन । वणिक् द्वारा भी राजा के अविवेक की निन्दा। १६. जिनदत्त की सातवीं कथा । महेश्वरपुर का वसुशर्मा विप्र वन में सिंह को देखकर वृक्ष पर चढ़ा । सिंह के चले जाने पर विप्र वृक्ष से उतरा। उसी समय वहां राजा के कहार पटों के योग्य काष्ठ की खोज में पहुंचे । विप्र ने उन्हें वही वृक्ष बतला कर उसे कटवा डाला । मुनि ने भी विप्र की निन्दा की। मुनि की पाठवीं कथा । अयोध्या का राजा शशिभद्र । २०. चन्द्रमती रानी । जलक्रीड़ा निमित्त सुन्दर वापी का निर्माण । रानियों की क्रीड़ा । वापी में सर्प का प्रवेश । वृद्धा द्वारा मार डालने का उपदेश । किन्तु युवतियों द्वारा उपेक्षा। ३६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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