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संधि-४० कडवक १. अर्थ की अनर्थमूलता पर धनमित्रादि बनियों को कथा । कौशाम्बी के धन
मित्रादि बत्तीस धनिकों की वाणिज्य यात्रा । राजगृह के मार्ग में चोरों द्वारा लूट । चोरों की भी परस्पर द्वेष बुद्धि से विषमिश्रित मिष्टान्न खाकर मृत्यु । अर्थ के निमित्त श्रावक द्वारा मुनि को क्षोभ की कथा । मणिवत पुरी के राजा मणिपति का मणिचन्द्र पुत्र । पिता की दीक्षा । मणिचन्द्र का राज्याभिषेक । मुनि का उज्जयिनी प्रागमन । मुनि का श्मशान में वास । रात्रि में विद्यासिद्धि हेतु कापालिक का आगमन व मुनि को मृतक जान उसके सिर पर अग्नि जलाकर खीर पाक । काय के चलायमान होने से कापालिक का भय से पलायन । प्रातः जिनदत्त सेठ द्वारा
मुनि को लाकर वैद्य से परामर्श । सर्वरोग हर तेल का विधान। ३. सोमशर्मा की पत्नी चुंकारी से तैल की प्रार्थना । घड़े से तेल लेने में तीन बार
घड़ों का फूटना । सेठ का चुंकारी के धैर्य पर आश्चर्य । ४. चुंकारी को क्रोध न आने के कारण का वृत्तान्त । मोढ देश में आनंद नगर ।
शिवशर्मा ब्राह्मण की कमला भ्रार्या व शिवभूति आदि पाठ पुत्र व भद्रा नामक एक पुत्री मैं (चुंकारी)। नगर में ढिंढोरा कि मुझसे कोई चूं भी न करे । अतः नाम पड़ा प्रचुंकारी। सोमशर्मा से इसी शर्त पर विवाह कि उससे वह कभी अप्रिय न बोले । एक
दिन पति के रात्रि में बहुत देर से आने के रोष में द्वार बंद । पति के दुर्वचन । ६. द्वार खोल बहिर्गमन । चोरों द्वारा लूटकर भिल्ल पल्लीपति को अर्पित ।
वनदेवी द्वारा शील-रक्षा। व्यापारी के हाथ विक्रय । उसके हाथ पारसकुल में
विक्रय । उसके द्वारा क्रिमिराग कम्बल हेतु रक्त-शोषण । दुखी जीवन । ७. उज्जयनी नरेश द्वारा राजकार्य हेतु प्रेषित मेरे भ्राता धनदेव का प्रागमन व
मेरा यहां पानयन । पति द्वारा वैद्य से पूछकर लक्षपाक मक्खन की मालिश से स्वास्थ्य लाभ । मुनि से श्रावकव्रत ग्रहण । रोष का परित्याग । तबसे परम शान्ति । जिनदत्त वणिक् द्वारा प्रशंसा व तेल लेकर गमन । उस तेल के द्वारा मणिपति मुनि को स्वास्थ्य लाभ । वर्षागमन का पालंकारिक वर्णन । जिनदत्त के जिनमंदिर में मुनि की योग-साधना। अपने पुत्र कुबेरदत्त के भय से जिनदत्त द्वारा रत्न-सुवर्ण से भरे घट को मुनि के समक्ष भूमि में गड़ाना । पुत्र द्वारा उसे निकालकर अन्यत्र स्थापना । योग समाप्ति पर मुनि का प्रस्थान । जिनदत्त को घट की प्राप्ति व मुनि पर अपहरण का सन्देह । मुनि को मनाकर लौटा लाना। कहानी कहने का प्रस्ताव । प्रथम जिनदत्त द्वारा कथा।
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