________________
३८२
३८३
३८३
३८४
३८४
( ८५ ) ५. बालक का राज्याभिषेक । दुर्मुख नामकरण । नमि का आगमन । कुंभकार कन्या
विश्वादेवी पर मोह व प्रेम के बदले उसके कच्चे भांडों की वृष्टि से रक्षा का प्राश्वासन । मंत्रित दण्डद्वारा भाडों का शीघ्र गृहप्रवेश । कुंभकार का आगमन । विवाह । गर्भ । धनार्जन हेतु स्त्री की भर्त्सना । कापालिका निर्माण व गोविंद ब्राह्मण को
अर्पण । प्रथम दिन की भिक्षा उसे देने का प्रतिबंध । ७. रानी के श्रीवत के प्रसंग में गोविन्द को भोजन व कापालिका को रत्नों का
दान । उसके द्वारा मुनि को व मुनि के द्वारा पत्नी को दान । पुत्र उत्पन्न होने पर श्मशान में डाल देने का उपदेश देकर मुनि का गुरु समीप आगमन व पुनः
व्रतग्रहण । नगर के राजा का निस्संतान मरण । ८. मंत्रियों द्वारा राजगज का प्रयोग व उसी करकंडनामक बालक का राज्याभिषेक ।
नमि का मरुदेश के मूलस्थान (मुलतान) गमन । राजकन्या दर्शन । गुप्तप्रेम । ६. राजकुमारी का गर्भ । धात्री द्वारा पूछताछ । यथार्थ निवेदन । दिन में पहचान
के लिये पीठ पर कुंकुम के हत्थे मार देने का उपदेश । राजकिंकरों द्वारा राजा
को निवेदन । गुणी जान कर उसी से राजकन्या का विवाह । १०, नग्गइ नामक पुत्र का जन्म । नमि की पुनः दीक्षा । आज भी लोगों की मुंडीर
नगर में सूर्य के उद्गमन, कालप्रिय (उज्जैन) में मध्याह्न व मूलस्थान में प्रस्तगमन की मान्यता। तीनों की नमि के पास प्रवज्या। चारों का उसी प्रजापति के ग्राम में विहार । रात्रि में ध्यानस्थ । ऊपर पावा लगा देने से चारों का मोक्षगमन । नारी मोह के दोष पर ब्रह्मा का आख्यान । ब्रह्मलोक में ब्रह्मा की चिन्ता-कोई समीप न आने जाने से अकेलापन । मर्त्यलोक में आगमन । अन्य देवताओं की भक्ति व अपनी उपेक्षा देखकर रोष । ब्रह्मा की वन में साढ़े तीन सहस्त्र दिव्य वर्षों तक तपस्या । पंचविध कालप्रमाण । देवों की सभा। सभा में सभी देवों व मनुष्य वर्गों का प्रागमन किन्तु ब्रह्मा अनुपस्थित । गवेषणा । वायु देवता द्वारा प्राप्ति । हर की चिन्ता व हरि से विचार-विमर्श । स्त्री द्वारा तपभंग का उपाय ।
तिलोत्तमा की सृष्टि व वसंत सहित प्रेषण । १५. ब्रह्मा का मोह । तिलोत्तमा के प्राकाश नृत्य-दर्शनार्थ चारों दिशामों में व
ऊपर की ओर पांचवें मुख की उत्पत्ति । १६. तिलोत्तमा का लोप । पुनः उर्वशी का समीपगमन । वसिष्ठ की उत्पत्ति ।
३८५
११.
३८५
३८६
३८६
३८७
३८७ ३८७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org