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( ८१ ) ७. देव द्वारा पहले चारुदत्त को और फिर मुनि को प्रणाण । मुनि से पूर्व गृहस्थ की
विनय का कारण-गुरुपद । ८. देव का पात्म परिचय । वाराणसी में सोमशर्मा ब्राह्मण । दो पुत्रियां भद्रा और
सुलसा । सुलसा अत्यन्त विदुषी एवं वाद में अजेय । सुलसा की वाद में जीतने वाले से विवाह की प्रतिज्ञा । याज्ञवल्क्य द्वारा पराजित होकर सुलसा का विवाह । ऋषि आश्रम में पुत्रोत्पत्ति। पिप्पल तले शिशु का त्याग । भद्रा द्वारा रक्षा व पिप्लाद नामकरण और वाराणसी प्रानयन । पालन व षडांग वेदाध्यापन । माता-पिता के सम्बन्ध में
प्रश्न । भद्रा द्वारा यथार्थ सूचना । १०. सुनकर पिप्पलाद का रोष । जाकर याज्ञवल्क्य से वाद व विजय । भद्रा द्वारा
मेल । माता-पिता का वध व पितृमेध यज्ञ । ११. मैं ( देव ) ऋषीन्द्र का वादलि नामक शिष्य । स्वर्ग हेतु नाना पशुयज्ञों का
विधान । छलक का जन्म । १२. वेद की ऋचाएं पढ़कर छह बार बलिदान । सातवीं बार छाल हेतु रुद्रदत्त द्वारा
मारे जाते समय चारुदत्त द्वारा सम्यक्त्व व पंचाक्षर मंत्र के दान से देवत्व
प्राप्ति । यही चारुदत्त के गुरु होने का वृत्तान्त । इसी से उसे प्रथम प्रणाम । १३. देव द्वारा चारुदत्त को रत्न-सुवर्ण देकर घर पहुंचाने का प्रस्ताव । चारुदत्त का
निषेध । देव का गमन । विद्याधर द्वारा चारुदत्त का अपने घर आनयन । बहिन गंधर्वसेना का परिचय व गंधर्व (गान) विद्या में जीतने वाले से विवाह
की भविष्यवाणी की सूचना । १४. गंधर्वसेना सहित चारुदत्त को विमान द्वारा उसके घर पहुंचाना । वसुदेव का
आगमन । गांधर्व विद्या में विजय प्राप्ति व गंधर्वसेना से विवाह । यह संसर्गदोष से चारुदत्त वणिक् की विपत्ति का कथानक ।
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१. संसर्गदोष से चारित्रभ्रष्ट होने की शकटमुनि कथा-शकटमुनि का कौशाम्बी में
आगमन व जयिनी के गृह में प्रवेश । आहार ग्रहण । गोष्ठी। वृद्धा द्वारा तप के कारण का प्रश्न । मुनि का प्रात्म परिचय । उसी नगर में सोमशर्मा द्विज
व वीणा ब्राह्मणी। २. पुत्र शकट । रोहिणी से विवाह । रोहिणी की मृत्यु । उसी के शोक में दिगम्बरी
दीक्षा । जयिनी का स्व परिचय । शिवशर्मा भट्ट की पुत्री । शंकर विप्र से _ विवाह । पति की मृत्यु । ३. मुनि द्वारा पूर्व परिचय । बालकपन में एक ही उपाध्याय के पास दोनों का
अध्ययन । पूर्व स्मरण से दोनों का परस्पर अनुराग, कुसुमपुर गमन व कवाड़ (कबाड़ी व्यापार) द्वारा निर्वाह ।
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