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________________ १५. १६. १७. नौका भंग । ऐसी ही अन्य सैकड़ों की भटकता फिरता इधर श्राया । भागवत द्वारा सिद्धरस हेतु इधर प्रवेश । तूंबी भर सिद्धरस लेकर व सींका काटकर यहां पात । दुर्दशा । अब तुम्हारी ( चारुदत्त की ) बारी । विपत्ति की शंका | रस देने न देने से दोनों प्रोर रस लेकर व रस्सी काटकर भागवत का गमन । चारुदत्त द्वारा सर्वज्ञ को नमस्कार, सन्यास ग्रहण व मित्र को धर्मोपदेश । १६. नरक की वेदनानों का वर्णन । २०. तिर्यंच गति की पीड़ायें । २१. मनुष्य गति के दुख । धर्म द्वारा शाश्वत सुख की प्राप्ति । सन्धि ३६ श्रावक धर्म व पंचाक्षर मंत्र का उपदेश । रस कूप से निकलने का उपाय प्रश्न ? गोह की पूंछ पकड़कर निर्गमन । गोह के बिल में प्रवेश कर जाने पर वृक्ष की जड़ का ग्रहण और फिर श्रज के पैर का । १८. कडवक १. २. प्रजपाल का अजगर की प्राशंका से खनन । मनुष्य की पुकार व निस्सारण । वन भैंसे का श्राक्रमण | भैंसे और अजगर का युद्ध । पलायन । मामा के मित्र रुद्रदत्त से भेंट व टंकन देश गमन । ३. महानदी उत्तरण, वेत्राटवी प्रवेश, टंकनगिरि लंघन कर टंकन देश प्राप्ति । दो प्रौढ़ मेंढ़े लेकर पर्वतारोहण । रुद्रदत्त द्वारा मैंढ़े का वध । चारुदत्त द्वारा कर्णजाप । खालों में दोनों का प्रवेश । भेरुंडपक्षियों द्वारा मांसपिंड जानकर अपहरण । मणिद्वीप की ओर उड़ान । अन्य पक्षी से भिड़न्त व रुद्रदत्त के पिंड का पतन व मरण । ( ५० नगर और द्वीप के बीच जाते श्राते सात बार नौका भंग । भ्राठवीं बार नौका भग्न | फलक पर चढ़कर सैन्धव देश प्राप्ति । गोविन्द नामक भागवत द्वारा सिद्धरस का प्रलोभन व पहाड़ के बिल में प्रवेश । रस भरते समय शब्द ध्वनि । श्रात्मनिवेदन | उज्जयिनी से वहां पड़े हुए पुरुष द्वारा वंचना का संकेत ब वाणिज्यार्थं कांचनद्वीप गमन । लौटते समय ४. पर्वत पर चारुदत्त का अवतारण । खाल फाड़कर निर्गमन । मुनि-दर्शन । मुनि का आत्म परिचय | कीलित विद्याधर का जन्मान्तर । ५. ६. प्रिया को छुड़ाकर गृहगमन । पिता द्वारा राज्याभिषेक । एक पत्नी जयसेना से गंधर्वसेना कन्या का व दूसरी पत्नी मनोहरा से सियश और वराहग्रीव पुत्रों का जन्म । ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर तप ग्रहण । सातों ऋद्धियों की प्राप्ति । द्वीप का नाम कंडक व पर्वत का कक्कडक । सिंहयश का ससैन्य आगमन। मुनि द्वारा चारुदत्त का भ्राता के रूप में परिचय | परस्पर मिलन | एक देव का श्रागमन । Jain Education International For Private & Personal Use Only ३५७ ३५८ ३५८ ३५८ ३५६ पृष्ठ ३६० ३६० ३६१ ३६१ ३६१ ३६२ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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