________________
आलाप पद्धति
आप: यह स्त्रीलिंगमे बहु वचन पद है इनका व्यवहारमे यद्यपि एकही अर्थ जल, पानी ऐसा किया जाता है तथादि शब्दशास्त्रके अनुसार यह व्यभिचार दोष मानकर उसका निषेध कर उन भिन्न भिन्न शब्दोंका भिन्न भिन्न अर्थ मानना यह शब्दनय है।
लिंग संख्या, कारक, आदि अपेक्षासे जो भिन्न भिन्न शब्दोंका लोकव्यवहारमे एकार्थं माना जाता है वह शब्दशास्त्रकी दृष्टिसे व्यभिचार दोष आता है। उसका निषेध कर शब्दनय उन भित्र भिन्न शब्दोंका भिन्न भिन्न अर्थ मानता है।
जो वट्टणं ण मण्णइ एयत्थे भिण्णलिंग आदींणं । सो सद्दणओ भणिओ पुस्साइयाण जहा। ( प्रा. नयचक्र ) ।
इस प्रकार प्राकृत नयचक्रमे भिन्न लिंग संख्या आदि भिन्न भिन्न शब्दोंका एकार्थ मानना शब्दनयकी दृटिसे व्यभिचार दोष मानकर उसका शब्दनय निषेध करता है।
____टीप- ( संस्कृत नयचक्रमें ) पुष्यः तारका-नक्षत्रं, इति एकार्थों भवति । अथवा दारा: भार्यां कलत्रं इति एकाथो वति । इति कारणेन
लिंग-संख्या साधनादि अपेक्षा व्याभिचारं मुक्त्वा शब्दानसारार्थ एकार्थः स्वीकर्तव्यः इति शब्दनय ॥ (संस्कृत नयचक्र)
इस प्रकार शब्दनयके विषयमें दो प्रकार मतभेद है।
धवला आदि ग्रंथोंमें ( शब्दभेदे अर्थभेद: ) भिन्नभिन्न शब्दोंका भिन्नभिन्न अर्थ मानना इसो को शब्द नय कहा है।
नोट- श्री महावीरजी संस्थान द्वारा प्रकाशित आलाप पद्धति ग्रंथमें दोनो प्रकारका मत उद्धृत किया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org,