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________________ पर्याय अधिकार (२३) विशेषार्य- जो पर्याय अन्य द्रव्यके संयोग संबंध के कारण परद्रव्यसापेक्ष होती है उसे विभाव व्यंजन पर्याय कहते हैं। यह विभाव व्यंजन पर्याय रूप परिणमन केबल जीव और पुद्गल द्रव्य में ही होता है। क्योंकि जीव और कमं नोकर्मरूप पुद्गल द्रव्य इनके परम्पर संश्लेष संबंध के कारण विजातीय विभाव ध्यंजन पर्याय रूप परिणमन होता है। तथा दो अथवा अधिक परमाणुओं के स्निग्ध रूक्ष स्वभावके कारण परस्पर सजातीय विभाव व्यंजन पर्याय रूप परिणमन होता है। स्वभावसे विपरीत लक्षण परिणमन को विभाव व्यंजन पर्याय कहते है। टीप- नियतक्रमववर्ती- पर्यायोंको नियत कार्य कारणभाव संबंधके कारण नियत क्रमबद्ध मानना यह वस्तुसंगत आगमसंगत युक्ति संगत है। जो लोक ईश्वरके समान नियतिको देव को कोई अपूर्व शक्ति मानकर नियतिके आधीन वस्तुका परिण मन होता है ऐसा मानकर पुरुषार्थ हीन प्रमादी स्वच्छंदी बनते है। उस नियतिवाद को आगममें मिथ्या नियतिवाद कहा है । परन्तु नियतक्रमबद्ध वाद यह उक्त मिथ्या नियति नहीं है। इस नियतक्रमबद्ध के साथ नियत पुरुषार्थ भी अविनाभावी रहता है । द्रव्यके स्वचतुष्टयमें नियतस्वद्रव्य नियतस्वक्षेत्र नियतस्वकाल ( काललब्धि - भवितव्यता ) नियतस्वभाव इनका अविनाभाव रहता है। प्रत्येक कार्य अपने स्वचतुष्टयमें होता है। इस प्रकार नियतक्रम बद्धपर्याय यह मिथ्या नियति न होकर सम्यनियतिवाद है वह सम्यक् पुरुषार्थ से अविनाभावी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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