SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२ ) आलाप पद्धति इस प्रकार उभयनय विवक्षासे परस्पर विरोधी धर्मात्मक अनेकान्तात्मक द्रव्यका स्वरूप है। गुण इति दव्व विहाणं दव्वविकारो हि पज्जयो भणिदों। तेहि अणूणं दव्वं अजुदपसिद्ध हवे णिच्चं ॥ अपने विवक्षित द्रव्यको दूसरे द्रव्यसे पृथक् रखना यह गुणोंका कार्य है । गुणरूप शक्ति विशेष अपने विवक्षित द्रव्यको दूसरे द्रव्यसे पृथक् रखते है । द्रव्यके विकारको परिणमनको पर्याय कहते है। गुण पर्यायोंके समूहका नाम ही द्रव्य है । अर्थात द्रव्य गुण पर्याय ये अभिन्न एक ही वस्तु है। गुण और पर्याय समूहका नाम द्रव्य है । द्रव्यका पर्यायरूपसे परिणमन करनेका जो शक्तिसामर्थ्य उसे गुण कहते है। प्रतिसमय जो द्रव्यका तथा प्रत्येक गुणका जो परिणमन उनको पर्याय कहते है। नियत पूर्व पर्याय विशिष्ट द्रव्य कारण कहलाता है । और नियत उत्तर पर्याय विशिष्ट द्रव्य कार्य होता है। इस प्रकार द्रव्यके पूर्वोत्तर पर्यायोंमें नियत कार्य कारण भाव होनेसे पर्यायोंका नियत क्रमवर्ती नियत क्रमबद्ध कहा है । प्रत्येक द्रव्यके गुण अपने सहभावी गुणोंके साथ युगपत् रहते है। इसलिये गुणोंको अक्रम अथवा सहभू कहा है । गुणोंका द्रव्यके साथ निरंतर अन्वय संबंध रहता है इसलिये गुणोंको ( अन्वयिनो गुणाः ) अन्वयी कहा है । परन्तु पर्याय नियत क्रमवर्ती है, एक पर्यायका दूसरे पर्यायके साथ व्यतिरेक पाया जाता है इसलिये (व्यतिरेकि: पर्यायाः) पर्यायोंको व्यतिरेकी नियत क्रमवर्ती ( नियतंक्रमवर्तित्वात् ) कहा है। इति द्रव्य गुण पर्याय वर्णन समाप्त ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy