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स्वमाव व्युत्पत्ति अधिकार
सदा सर्वकाल अस्तिस्वभाव है ।। अर्थात् द्रव्य सदास्वचतुष्टयके साथ अस्तिरुप रहता हैं । ( न अभावो विद्यते सताम् )
परस्वरूपेण अभावात् (अभवनात्) नास्ति स्वभावः ॥ १०७॥
प्रत्येक द्रव्य परद्रव्य-परक्षेत्र-परकाल-परभाव रुपसे सदा सर्वकाल नास्तिस्वरुप है । अर्थात द्रव्य परचतुष्टयरुप कदापि होता नहीं । वस्तुमें परद्रव्यादि चतुष्टयका सदा सर्वकाल अभाव है, नास्ति है ॥
विशेषार्थ- प्रत्येक वस्तुमें स्वचतुष्टयकी अस्ति तथा परचतुष्टयकी नास्ति ये दोनो धर्म अविनाभावरुपसे अविरोध रुपसे रहते । परचतुष्टयकी नास्ति विना स्वचतुष्टयकी अस्ति सिद्ध नही हो सकती।
निज निज-नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्य स्वभावः ॥ १०८॥
अपनी अपनी अनन्त पर्यायोंमें सदा सर्वकाल अचलरुप रहना ध्रुव स्वभाव यह वही है' इस प्रकार एकत्व स्थापित करणे वाला नित्यस्वभाव है ।। द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्य नित्य है।
तस्यापि अनेक पर्याय परिणमितत्वात अनित्य स्वभावः ॥ १०९॥
उसी द्रव्यका अपनी अनन्त पर्यायोंमें नियतक्रमबद्धरुपसे
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