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( ६८ )
आलाप पद्धति
भूत-भविष्यत् पर्यायोंका वस्तुमें सद्भाव न होनेके कारण वे प्रमेय नहीं कहे जावेंगे ।
समाधान- यह कहना ठीक नहीं । क्योंकि वस्तुके सब त्रिकालवर्ती पर्यायसत्रुपसे शक्तिरुपसे गुणरुपसे सदा वस्तु में विद्यमान रहते है । वे अपने अपनें नियत क्रमबद्ध स्वकालमें वर्तमान पर्याय रुपसे प्रगट होते हैं । इसलिये वर्तमान भूत-भविष्य पर्याय समूहात्मक पदार्थ ही ज्ञानका प्रमेय होता है ।
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अगुरुलघोः भावः अगुरुलघुत्वं । सूक्ष्माः अवाग्गोचराः प्रतिसमयं वर्तमानाः आगम- प्रामाण्यात् अभ्युपगम्याः णगुरुलघुगुणाः ॥ ९९ ॥
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सूक्ष्मं जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिर्नैव हन्यते ।
आज्ञा सिद्ध तु तद् ग्राह्यं नान्यथावादिनो जिनाः ॥
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अगुरु लघुका जो भाव वह अगुरुलघुत्व है । प्रत्येक गुण में अगुरुलघुत्व शक्तिके निमित्तसे जो सूक्ष्म अविभाग प्रतिच्छेदरुप गुणांश होते है, वे प्रतिसमय षट्स्थान पतित हानिवृद्धिरुपसे परिणमते हैं । वे इंद्रिय गोचर नहीं, वाणी गोचर नहीं है । आगमप्रामाण्यसे उनका ज्ञान होता है । आगमके सूक्ष्म विषय आज्ञा सिद्ध प्रमाण माने जाते है । क्योंकि आगमके रचयिता केवली - श्रुतकेवली वस्तुका जो वस्तुनिष्ठ यथार्थ स्वरुप हैं वही जानते हैं वही प्रतिपादन करते हैं । केवली भगवान अन्यथावादी नहीं होते है ।
इसका वर्णन पूर्व में सूत्र ९ तथा सूत्र १७ में किया गया हैं ।
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