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एस करेमि पणाम-आ हुं प्रणाम करूं छु,
जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स-जिनवरोमां श्रेष्ठ श्री वर्द्धमान स्वामीने,
सेसाणं च जिणाणं-तथा बीजा जिनेश्वरोने, सगणहराणं च सव्वेसिं-तथा गणधरो युक्त बधांने
भावार्थ-मोहनो नाश करवावाळा मुनिवरोमां, तथा क्रोध, मान, माया अने लोभरूप चार कषायने नाश करनारा सामान्य केवळीओमां धुरंधर वृषभ जेवां, श्री वर्धमान महावीर स्वामीने तथा भूत अने भविध्यना सर्वे तीर्थकरो तथा बाको रहेला त्रेधीश तीर्थकरो तथा तेमना गणधरो ते सर्वेने हुं नमस्कार-वंदन करूं छु ॥ १ ॥ मू-जगमत्थयत्थियाणं, वियसियवरनाणदसणधराणं । नाणुज्झोयगराणं, लोगमि नमो जिगवराणं ॥२॥
शब्दार्थ:'जग-जगतना
धरागं-धारण करनारा मत्थय-मस्तक उपर
नाण-ज्ञान त्थियाणं-स्थिर रहेला
उज्झोयगराणं-उद्योत-प्रकाश 'वियसिय-विकसेला
करनारा वर-श्रेष्ठ-उत्तम
लोगमि-लोकमा रहेला नाण-ज्ञान
नमो-नमस्कार हो दंसण-दर्शन,
जिणवराणं-जिनेश्वरोने
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