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________________ अने ते मळ्या पछी तेनुं रक्षण करवावाळां, एवां गुणोवाळा होवाथी तेओने नाथ कहे छे, संसारमां बनता अशुभ कर्म-पाप तद्रूप तापदुःख-ग्लानि-खेद तेनाथी हेरान थयेला जीवोने खूब सारी रीते शान्ति करवामां पाणीथी भरेला वादळ जेवां, (पार्श्वनाथ भगवाननो वर्ण नील. छे अने वर्षाऋतुना वादळ पण नील होय छे अने ते उन्हाळाना असह्य तापथी हेरान थयेला लोकोने वरसाद वरसावी शांति आपे छे एज प्रमाणे पार्श्वनाथ परमात्मा पण शांति आपनारा छे.) अर्थात् नील वर्णवाळा अने भव्य जीवोने विघ्न-अंतराय-दुःख तेना समूहने नाश करनारा,. तथा नागकुमार देवताना अधिपति धरणेन्द्र तेनाथी सेवायेला तथा तेरमा गुणस्थानमा रहेला सामान्य केवळी तेना पग अधिपति, श्री पार्श्वनाथ परमात्मा बबानां कल्याण करवावाळां थाओ अर्थात् सर्व प्रकार, कल्याण करवावाळां थाओ ॥१॥ मू०–एस करेमि पणाम, जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सेसाणं च जिणाणं, सगणहराणं च सव्वेसिं ॥१॥ शब्दार्थःएस-आ हुं, सेसाणं-शेष, बाकी, करेमि-करुं छु, च-अने पणाम-प्रणाम-नमस्कार, जिणाणं-जिनेश्वरोने, जिणवर-जिनवरोमां, वसहस्स-वृषभ-मुख्य जेवां, सगणहराणं-गणधरोथी सहित,. वद्धमाणस्स-महावीर स्वामीने सव्वेसिं-सर्वेने, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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