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वइकंतो, चातुर्मासिक प्रतिक्रमणमां ' चउमासी वइक्वंता' अने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणमां 'संवच्छरो वइक्कतो' ए रीते पाठ कहेवो. पद ५८, गुरु २५, लघु २०१, सर्ववर्ग २२६.
॥ इति सुगुरुवंदना सूत्र १० ॥
(ए रीते बे वांदगा देवा. बीजो बांदगो बेठा रही पूरी करवो. चउविहार उपवास करनारे बांदणा देवा नहि. पछी “ आवस्सई" भणी अवग्रह बहार नीकळी कहेQ-इच्छकारी भगवन् पसाय करी पञ्चख्खाण कराबो एम कही यथाशक्ति पञ्चख्खाग कर. ) पछी
इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि ॥ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं । इच्छं ॥
(एम कही डाबो ढीचण भूमिथी ऊंचो, ने जमणो ढीचण भूमि उपरज राखवो अने बे हाथ जोड़ी मुहपत्ति मोढा पासे राखी बोलq.)
॥११ अथ चैत्यवंदन ॥ मू-श्रीपार्श्वनाथो भवपापताप-प्रशांतधाराधरचारुरूपः । विघ्नौघहंता प्रणतोरगेन्द्रः,समस्तकल्याणकरोजिनेन्द्रः॥१॥
शब्दार्थःश्रीपार्श्वनाथ:-श्री पार्श्वनाथ ) भव-संसारना भगवान्
पाप-पापरूप
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