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________________ ७२ तेने हे क्षमाश्रमण! गुरु ! आपनी समीपे हुं पडिक, छं, आत्म साक्षीए निहुँ छं. आप गुरुनी साक्षीए गर्दा करूं छं. अने तेवा पापमय मारा आत्माने हुं वोसरा, छं-तनुं छं. बीजी वारना वांदणामां आवस्सिआए' ए पद कहेवू नहीं. अने रात्रि प्रतिक्रमणमां 'राइ वइकंता', पाक्षिकप्रतिक्रमणमां 'पक्खो वचन बोलतां गुरुआशातना लागे. २७ अथवा ए बाबत हुं तमने पछी सारी रीते समजावोश एम आप डहापण बतावत्रा सभा समक्ष बोली, चालती कायाको भंग करे, तो तेथी गुरुआशातना लागे. २८ अथवा एवे अवसरे आवीने शिष्य कहे के महाराज ! पोरसीवेळा के आहारवेळा थइ गइ छे एम कहोने पर्षदानो भंग करे तो गुरुआशातना लागे. २९ अथवा पर्षदा उठी गइ न होय एटलामां आप डहापग बताक्वा माटे गुरुमहाराजे व्याख्यानमां कहेलीज वात वधारे विस्तारी बतावे तो गुरुआशातना लागे. ३० गुरु संबंधी शय्या-संथारा प्रमुखने पोताना पग विगेरेथी संघट्ट करी पाळु खमावे नहीं तो आशातना लागे. ३१ गुरुनी शय्या के संथारादिक उपर पोते बेसे के आळोटे के असभ्य रीते तेनो स्पर्श करे तो गुरुआशातना लागे. ३२ गुरुथकी उंचा आसने बेसे, अथवा गादी करी बेसे अथवा गुरु जेवां के तेथो अधिक मूल्यवाळां वस्त्र वापरे तो दोष लागे. ३३ गुरु जेवा समान आसन उपर बेसे अथवा गुरु जेवां समान वस्त्र लइ वापरे तो गुरुआशातना लागे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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