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________________ १९ गमणागमणे पाणकमणे एक स्थानेथी बीजे स्थाने जतां आवतां कोई पण प्राणी (जीवो) नुं आक्रमण करतां - दबावतां. atraमणे हरियकमणे - बीजने आक्रमण करतां, लीली वनस्पतिनुं आक्रमण करतां. ओसा - उत्तिंग-पण - दग-मट्टी- मक्कडासंताणा - संकमणे - झाकळ, कीडीयोना दर, पांचवर्णनी लील-फूल - सेवाल, काचुं पाणी, माटी, सचित्त माटी सहित काचुं पाणी, कोच्चड, अने करो - ळीयानी जाळ ए बधांने आक्रमण करतां - दबावतां चांपतां. ४ भावार्थ - मार्गमां जतां आवतां जीवोने दबाववाथी, बीजने चांपवाथी, लीली वनस्पति खुदवा-चांपवाथी, तथा झाकळ, कीडीओनां दर, पंचवर्णी लील फूल - सेवाळ, काचुं पाणी, सचित्त माटी अने करो - कौयानी जाळ ए सर्वने दबाववाथी जे कोई जीवोनी में विराधना करी होय एटले तेमने पीडा उपजावी होय. ते केवा जीवो ? ते बतावे छे- मू० - जे मे जीवा विराहिया ५। एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ६। शब्दार्थः - जे-जे कोई मे-में जीवा - जीवो Jain Education International विराहिया - विराध्या- दुःखी कर्या होय एगिंदिया - एक इन्द्रियवाळा : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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