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३७८ भावार्थ-विनयथी नमेला मस्तकपर अंजळि करीने मुनिओना ('जंघाचारण अने विद्याचारण ) समूहे जे प्रभुनी स्तुति करी छे, जे कदापि चलायमान नथी, देवेंद्रोए, कुबेर विगेरे दिकूपाळोए अने चक्रवर्तीओए जेमनी वचनवडे स्तुति करी छे, कायावडे जेमने नमस्कार कर्या छे अने पुष्पादिकवडे जेमनी पूजा करी छे, जे तपवडे तत्काळ उदय पामेला शरद् ऋतुना सूर्यथी पण अधिक कांतिवाळा छे, आकाशने विषे विचरवाना क्रमथी एकठा थएला चारण मुनिओए मस्तक नमावी जेमने वंदन कयु छे. १९.
असुरगरुलपरिवंदिअं, किन्नरोरगनमंसि। कदेवकोडिसयसंथुअं, समणसंघपरिवंदिरं ॥२०॥
(सुमुहं ) शब्दार्थ:परिवंदिअं-समस्त प्रकारे नमंसि-नमस्कार समण-श्रमण वंदाएला
करायेला . संघ-संबवडे भावार्थ-असुरकुमार अने सुवर्णकुमारोए जेमने समग्र रीते वंदना करी छ, किन्नर अने नागकुमारोए जेमने नमस्कार कर्या छे, सेंकडो करोड देवोए जेमनी स्तुति करी छे, श्रमणसंघ-साधुसमुदाय जेमने निरंतर वंदन करे छे. २०.
१ चारण मुनि मुख्य बे प्रकारना छे-जंघाचारण अने विद्याचारण, ए सिवाय बीजा पण अनेक प्रकारना चारण मुनिओ ज्योतिरश्मि चारण विगेरे श्री प्रवचनसारोदारादिमां बतावेला छे.
* जघन्यथी पण एक क्रोड देवता भगवंतनी सेवामां होय छे.
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