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________________ क्रियाथी करेला कर्म अने कषायथी अथवा कर्मना क्लेशथी मूकावनार छे, आ नमस्कारनो प्रभाव एटलो बधो छे (के बीजा अन्य देवोना नमस्कारथी जीताय तेवो नथी एटले के अन्य देवादिकना नमस्कारथी आ नमस्कार अधिक फळ आपनार छे) तथा आ नमस्कार समग्र गुणोवडे युक्त छे, महा योगीओनी अणिमादिक अष्ट सिद्धिने आपनार छे, अने शांतिने आपनार छे. ५. पुरिसा ! जइ दुक्खवारणं, जइ य विमग्गह सुक्खकारणं। अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवजहा ॥६॥ ___ (मागहिआ) * अणिमादिक आठ सिद्धिओ आ प्रमाणे अणिमा-झीणा छिद्रमा प्रवेश करवानी शक्ति १, महिमा-मे मोटुं शरीर करवानी शक्ति २, गरिमा-तोलमां अत्यंत भारे नी शक्ति ३, लघिमावायुथी पण हलका थवानी शक्ति ४, प्राप्ति-पृथ्वीपर उभा रहीने आंगळीवडे मेरुना शिखरने तथा सूर्यादिकने स्पर्श करवानी शक्ति ५, प्राकाम्य-जळमां स्थळनी जेम चाले अने स्थळमां जळनी जेम डूबकी मारीने नीकळे तेवी शक्ति ६, ईशित्व-स्थावर पण आज्ञा माने तेवी शक्ति अथवा तीर्थकर, चक्रवर्तीनी जेवी ऋद्धि विस्तारी शके ७, अने वशित्व-जीव अजीव सर्व पदार्थ वशमा रहे तेवी शक्ति, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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