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________________ ૩૪૮ विर्याचारना त्रण अतिचार तेहने विषे, जे कोइ पख्खी, चउमासी, संवच्छरी दिवसने विषे अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार लाग्यो होय ते सवि हुं मन, वचन, कायाए करी तस्स मिच्छामि दुक्कडं. इम आलोवे सवि व्रत धार, एकसो चउवीसे अतिचार पर्व दिवस गुरु साखे करी, जिनवर वचन ते हियडे धरी ॥ १४७ ॥ जासु नही व्रतनो उच्चार, ते आलोवे पाप अढार; दाडातणो वरतारो करे, गुणतो सूत्र सवे ऊचरे ॥ १४८ ॥ जिनवर प्रतिषेध्युं ते कर्यु, करवा क ते नहु कर्यु; जिनभाषित जे नहु सद्दयुं, आगमथी विपरीत जे कह्युं ॥ १४९ ॥ व्रतधारकने जे जिनेश्वर भगवाननी आ प्रमाणे आज्ञा छे एम हृदयमां धारी आ रीते बधां मळीने १२४ अतिचार जे बार व्रतवारी श्रावक पर्व दिवसे गुरुनी साक्षीए आलोवे. १४७. अने जे बार व्रतधारी न होय तेणे पण अढार पापस्थानक आलोक्वा. आखा दिवसनी वर्त्तणुक केवी रीते करी छे तेनो हिसाब गणी बंधां सूत्र उच्चारी जाय. १४८. जिनेश्वर भगवाने जे कार्य करवानो निषेध कर्यो होय ते कर्यु १, जे कार्य करवा कहेल होय ते न कर्यु, २, परमात्माना वचनोनी अश्रद्वा करी ३, अने परमात्माना शास्त्रोक्त कथनथ विपरीत प्ररूपणा करी ४, १४९ - आ चार प्रकारमां तमाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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