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________________ ३११ हवे विशेष श्रावकनो धर्म, समकित तत्त्व लहे लघुकर्म, समकित लाधे सर्व प्रमाण, जप तप संयम नाण विनाण ॥ ३२॥ समकित रतन जतन करि ग्रहो, जासु प्रसादे शिवसुख लहो; समकित पाखे शिवपद दूर, चउगई जीव भमे भव भूर॥३३॥ चारित्र पाले ____ हमेशां, पाखी, चउमासो, संवत्सरी दिवसोमां प्रगट रीते मने मिच्छामि दुक्कडं हजो. अरिहंत-सिद्ध सर्वे जाणजो, गुरु साक्षीए मारं पाप मिथ्या थाओ. ३१ चारित्राचारना आठ अतिचार छे ते संबंधी अने पाक्षिक, चौमासिक के सांवत्सरिक जे कोइ अतिक्रम, व्यतिक्रम के अतिचार, अनाचार लाग्यो होय ते सर्वे हुं जाते मन, वचन कायाए मिथ्या करुं छं. __ हवे पछी विशेषे करी श्रावकना धर्ममा रहेला आचार अने अति. चारोने कहे छे. कारण के ज्ञानादिक अतिचार साधु अने श्रावकना सरखाज छे. तेथी जूदा नथी पाड्या. लघुकर्मी जीवो समकित मेळवी शके छे. समकित मेळव्या पछी जप-तप-संयम-ज्ञान-विज्ञान विगेरे मेळवे. ३२ समकितरूप रत्न मेळवीने बहु सारी रोते तेनुं रक्षण करे, कारण के तेनी महेरबानीथीज मोक्षनुं सुख प्राप्त थाय छे. कारण के समकित विना मोक्ष मेळवQ मुश्केल-दूर छे. अने प्रागी चारे गतिमां घणा लांबा काळसुधी भव भ्रमण कर्या करे छे. ३३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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