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ईश्वर जगदीश्वर नमेवि, गुणगावे सुर नर, नेमिप्रभ प्रभु वीरसेन, महाभद्र सुहंकर ॥५॥
अर्थ-पुष्करार्द्ध द्वीपने विष नवमा जिन राजा एवा चंद्रबाहु निन बिराजे छे. चतुर पुरुषोमां उत्तम एवा दशमा भुजंग नामा जिन-. राज ते वाणिना गुणे करीने मेघनी परे गाजे छे. जगतना इश्वर एवा श्री इश्वर जिनने नमीने देवो अने नरो सदागुण गाइ रह्या छे. नेमिप्रभजिन अने वीरसेन नामाजिन अने महाभद्रनामा जिन प्रभु सुखने करनारा छे. ५. नमिये ते श्रीदेवयश, जगि जस पसरे जास; अजितवीर्य अष्टम करे, दिन दिन ज्ञानप्रकाश ॥ ६॥
अर्थ-जगतमा जेमनुं यश पसरी रहेल छे एवा ते श्री देवयश नामा जिनने नमिये छीए. अजितवीर्य ( अष्टम ) नामा आठमां जिनराज दिवस दिवसने विषे ज्ञान गुणनो प्रकाश छे. ६.
मणुयखित्त पणयाल लक्ख जोयण जाणीजे, तिहछे पंच विदेह, गुरु ओपम तसु दीजे; उसप्पिणी अवसप्पिणिकाल तिह, नहिय निरंतर, स्वामी रिसहनिर्णिद कालसरिसो नहु अंतर ।। ७ ॥
अर्थ—मनुष्य क्षेत्र पीस्तालीश लाख योजननो जाणवो. मनुष्या क्षेत्रमा पांच महाविदेह नामे मोटां क्षेत्रो छे, ने ते मोटी उपमावाला छे (तेने मोटी उपमा आपवी जोइए केमके ज्यां तीर्थकर जाते विचरे छे).
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