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बगाडे छे, ते एम सूचवे छे के--हे भव्य प्राणीओ! तमे शिवपुरना सार्थवाह तुल्य आ भगवाननी सेवा करो-तेमनुं शरण करो.
८ छत्र-समवसरणमां देवताओ भगवानना मस्तक उपर शरदचंद्र जेवां उज्ज्वल अने मोतीना हारोथी सुशोभित उपराउपर त्रण त्रण छत्रो रचे छे, भगवान पोते समवसरणमा पूर्वाभिमुख-पूर्व दिशानी सामे बेसे छे, अने बीजी त्रण दिशाओमां देवताओ भगवंतना ज प्रभावथी प्रतिबिंबो रचीने स्थापे छे, तेथी कुल बार छत्रो ते वखते होय छे. अन्य वखते त्रण न छत्र होय छे. समवसरण न होय त्यारे पण आ आठ प्रातिहार्यो तो होय ज छे.
हवे चार मूळ अतिशय (उत्कृष्ट गुण) कहे छे
९ अपायापममातिशय-अपायनो एटले उपद्रवनो अपगम-- नाश. ते घोताने आश्रयी अने बीजाने आश्रयो एवा बे प्रकारे छे. तेमां बीजाने आश्रयी अपायापगम अतिशय ए के-जेनाथी बीजाना उपद्रवो नाश पामे, अर्थात् ज्यां भगवान विहार करता होय त्यां दरेक दिशामां मळी सवासो योजन सुधी प्रायः रोग, मरकी, वेर, अवृष्टि, अतिवृष्टि, वगेरे थाय नहीं. हवे पोताने आश्रयी अपायापगम अतिशयना द्रव्यथी अने भावथी एम बे प्रकार छे. तेमां द्रव्यथी अपाय एटले सर्व प्रकारना रोगो, ते पोताने सर्वथा क्षय थया होय छे. तथा भावथी अपाय एटले अढार प्रकारना अभ्यंतर दोषो, ने पण पोताने सर्वथा होता नथी. ते अढार दोषो आ छे. --दानांतराय १, लाभांतराय २, भोगांतराय ३,
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