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केवळज्ञान प्राप्त करीने भव्यजीवोने प्रतिबोध दे अने प्रतिबोध देवा माटे विहार करे एवां बार गुणवाळा तीर्थंकर भगवानने अरिहंत कहे छे.
१ अशोकवृक्ष-ज्यां भगवाननुं समवसरण रचवामां आवे छे, त्यां तेमना देहथी बार गुणो उंचो अशोकवृक्ष रचवामां आवे छे, तेनी नीचे बेसी भगवान देशना आपे छे.
२ सुरपुष्पवृष्टि-एक योजन प्रमाण समवसरणनी भूमिमां जळमां तथा स्थळमां उत्पन्न श्रयेला सुगंधी पांच वर्णोवाळां तथा भगवाननां अतिशयने लइने जेना जीवोने बाधा-पीडा थती नथी, एवां सचित्त पुष्पोनी ढींचण सुधी वृष्टि-वरसाद देवताओ करे छे.
३ दिव्यध्वनि-भगवाननी वाणीने मालकोश राग, वीणा, वांसळी विगेरेना स्वरवडे देवो पूरे छे.
४ चामर-रत्नजडित सुवर्णनी दांडीवाळा चार जोडी श्वेत चामरो समवसरणमां देवताओ भगवानने वींझे छे.
५ आसन-देवताओ भगवानने बेसवा माटे रत्नजडित सुवर्णतुं सिंहासन रचे छे.
६ भामंडल-भगवानना मस्तकनी पाछळ शरद ऋतुना सूर्य जेवं उग्र तेजस्वी भामंडल देवताओ रचे छे, तेमां भगवान- तेज संक्रमे छे. तेम न करे तो भयवाननुं मुख जोइ शकाय नहीं.
७ दुंदुभि-भगवानना समवसरण वखते देवताओ देवदुंदुभि
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