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शब्दार्थःकम्मभूमिहिं-ज्यां कर्म वर्ते छे । गम्मइ-जाणीए कम्मभूमिहिं-कर्मभूमिमां
संपइ-वर्तमान काळे पढम-पहेला
जिणवर-तीर्थकरो संघयणि-संघयणवाळा
वीस-वीस उक्कोसय-उत्कृष्टपणे
मुणि-मुनिओ सत्तरिसय-एकसो सीत्तर
बिहुँ कोडी-बे क्रोड जिणवराण-तीर्थकरो विहरंत-विचरता
वरनाणि-केवळ ज्ञानवाळा लब्भइ-पमाय छे
समणह-साधु नवकोडी-नव क्रोड
कोडी--कोड केवलिण-केवळज्ञानी
सहसदुअ-बे हजार कोडि-क्रोड
थुणिज्जइ-स्तुति करीए सहस्सनव-नव हजार
निच्च-हमेशा साहु-साधुओ
विहाणि-प्रभातमा
भावार्थ-सर्व कर्मभूमिओमां एटले असि, मषी अने कृषिरूप कर्म जेमां वर्ते छे एवा पांच भरत, पांच ऐश्वत अने पांच महाविदेह क्षेत्रमा के ज्यां दरेकमां बत्रीश बत्रीश विजय होवाथी कुल १६० विजयो छे, तेमां पांच भरत अने पांच ऐस्वत नाखबाथी १७० कर्मभूमिओने विषे प्रथम संघयणवाळा उत्कृष्टकाळे विचरता १७० तीर्थकरो
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