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होवाथी बंधुरूप छे, जेओ जगतना भव्य जीवोने मोक्षमां लइ जनार होवाथी सार्थवाह छे, जेओ जगतना सर्व पदार्थोने जाणवामां तथा तेनी प्ररूपणा करवामां विचक्षण एटले निपुण छे, तेमनी प्रतिमाओ *अष्टापद पर्वतपर स्थापन करेली छे, जेओ आठे कोनो नाश करनारा छे, तथा जेओनुं शासन एटले उपदेश सर्वत्र अप्रतिहत एटले कोइथी बाधा-खंडन न कराय तेवु छे एवा चोवीशे तीर्थकरो जय पामो. १. हवे तीर्थंकरोनी, केवलज्ञानोओनी अने सामान्य साधुओनी स्तुति करे छे.
मू०-कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढमसंघयणि, उकोसय
xसत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ । नवकोडी केवलिण, कोडिसहस्स नत्र साहु गम्मइ॥ संपइ जिण. वर वीस, मुणि बिहुँ कोडी वरनाणि । समणह कोडिसहसदुअ थुणिज्जइ निच्च विहाणि ॥२॥
* अष्टापद उपर श्री ऋषभदेवना पुत्र भरतचक्रोए चोवीशे तीर्थकरनी प्रतिमा मणिमय स्थापन करेल छे, ते दरेक तीर्थकरोनी पोतपोतानी कायाना मापे प्रतिमा छे; सौनी नासिका सरखी लाइनमां छे, बेउकनी पाटली नीचा उंची छे.
. x पांच भरत, पांच ऐरक्त अने पांच महाविदेहनी कुल एक सो ने साठ विजय, ते सर्वमा एक एक तीर्थकर होय त्यारे उत्कृष्टा १७० तीर्थकरो पमाय छे. ते प्रमाणे श्री अजितनाथने वारे हता.
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