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उज्जित - गिरनार
सेल - पर्वतना
सिहरे - शिखर उपर दिक्खा - दिक्षा कल्याणक
नाणं - केवळज्ञान कल्याणक
जस्स-जेमना
तं ते
धम्म- धर्मना
चक्कवट्टि - चक्रवर्ति एवा अरिहनेमिं - श्री नेमनाथने
निसीहिआ - मोक्ष कल्याणक
नम॑सामि- नमस्कार करूं लुं
भावार्थ- श्रीगिरनार पर्वत पर जे प्रभुनां दीक्षा, केवळज्ञान अने निर्वाण ए ऋण कल्याणक थयां छे, ते धर्मचक्र प्रवर्तावनार श्री अरिष्टनेमि प्रभुने हुं नमस्कार करूं कुं. ४.
मू० - चत्तारि अट्ठ दस दो, अ वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं । परमट्ठनिडिअट्ठा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।। ५॥
शब्दार्थ
चत्तारि-चार
अट्ठ-आठ दस-दश
दो-बे अ- अने बंदिआ - बंदायेल
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शब्दार्थ
जिणवरा - जिनेश्वरो चउव्वीस - चोवीस
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परमट्ठे--परमार्थ वडे
निट्टि - सिद्ध
अड्डा - अर्थ जेमना
सिद्धा -- सिद्ध थयेला
सिद्धिं -- मोक्ष
मम मने
दिसंतु आपो
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या छे
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