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________________ प्रमाण ग्रहण कयु होय, ते व्रतनो अमुक दिवसे के अमुक वखते संक्षेप करी घर, शय्या के अमुक स्थानथी आगळ जवानो निषेध करवो अथवा सर्व व्रतोनो मुहूर्त आदि अमुक मुदत सुधी संक्षेप करवो ते xदेशावकाशिक व्रत कहेवाय छे. दिग्विरति व्रत जावजीवन होय छे, अथवा वरस के चातुर्मासर्नु होय छे, परंतु आ देशावकाशिक व्रत तो दिवस, प्रहर के मुहूर्त आदिकना परिमाणवाळु होय छे.* आटलो आ व्रतमां तथा छठा व्रतमां तफावत छे. एज रीते सर्व व्रतनो संक्षेप पण अमुक काळ सुधी करवामां आवे छे. आ व्रतना पांच अतिचारो आ प्रमाणे छे.-नियम करेली हदनी बहारथी कांई वस्तु जोइती होय ते व्रतभंगना भयने लीधे पोते न जतां कोइ पासे मंगाववी ते आनयन नामनो पहेलो अतिचार छे. १. ए ज रीते नियमित हदनी बहार कोइ द्वारा कांइ वस्तु मोकलवी ते प्रेषण नामनो बीजो अतिचार छे. २. नियमित हदनी बहार रहेला *देशमां एटले आरंभना एक भागमा अवकाश-रहे, ते देशावकाश कहेवाय छे, ते देशावकाशथी बनेलं जे व्रत ते देशावकाशिक कहे वाय छे. जेम कोइ मांत्रिक आखा शरीरमां व्यापेला विषने मंत्रशक्तिथी डंखमां लावे छे, तेम धर्मिष्ठ पुरुष बहु सावध व्यापारनो संक्षेप करे छे, तेना संक्षेपथी कर्मनो संक्षेप थाय छे, अने तेना संक्षेपथी अनुक्रमे मोक्ष प्राप्त थाय छे. हालनी प्रवृत्ति प्रमाणे उपवास के एकाशनादिक करी आठ . सामायिक अने बे प्रतिक्रमण करवानो रीवाज छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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