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गंध-सुगंधी पदार्थ | परिभोगे-परिभोगने विषे मल्ले अ-फूलनी माळा बीमि-बीजा उवभोगे-उपभोगने विषे ।
गुणव्वए-गुणवतने विषे भावार्थ-आ बीजं गुणवत एटले सातमुं व्रत भोगोपभोग नामर्नु छे, तेने उपभोगपरिभोग नामे पण कहेवामां आवे छे. आ व्रत भोगथी अने कर्मथी एम बे प्रकारे छे. तेमां पण भोगना बे भेद छेउपभोग अने परिभोग. तेमां आहारादिक के जे वारंवार भोगवाय छे, अथवा पुष्पादिक के जे एकज वार भोगवाय छे ते *उपभोग कहेवाय छे. १. तथा वारंवार अथवा बहारथी जे घर, स्त्री विगेरे भोगवाय छे, ते + परिभोग कहेवाय छे. २. प्रथम तो श्रावके उत्सर्ग मार्गे प्रासुक अने एषणीय आहार ज ग्रहण करवो योग्य छे, तेम न बनी शके तो. सचित्त वस्तुनो त्याग करवो, ते पण न बनी शके तो अति सावध पापवाळा मध, मांस, अनंतकाय विगैरेनो अवश्य त्याग करी प्रत्येक,. मिश्र अने सचित्तादिकनुं प्रमाण-परिमाण कर. तेम ज उत्सवादिक विशेष कारण विना कीमती वस्त्रो, नू पुरादिक शब्द करता. अलंकारो, छोगावाळी पाघडी फेंटो विगेरे चित्तनी गृद्धि अने उन्माद उत्पन्न करनार तथा लोकमां पण अपवादादिक उत्पन्न करनार उद्भट वेषनो श्रावके त्याग करवो जोइए.
* अहीं 'उप'नो अर्थ अंदर अथवा एकवार थाय छे. + अहीं 'परि 'नो अर्थ वारंवार अथवा बहार एवो थाय छे.
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