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________________ अपरिग्गहिआ - कुंवारी इत्तर - बीजी अणंग - अनंग क्रीडा १४७ शब्दार्थः— तिव्व - तोत्र ( घणीज़ ) अणुरागे - अभिलाषा चउत्थ- चोथा वीवाह - लग्न संबंध वयस्स - व्रतना भावार्थ: आ चोथा व्रतना पांच अतिचारोने आश्री जे कांइ अशुभ कर्मनो बंध थयो होय तेने हुं प्रतिक्रमुं लुं. ते पांच अतिचार आ प्रमाणे छेः - विधवा के कन्या विगेरेने आ कोइनी स्त्री नथी एम घारी तेना प्रत्ये गमन करवुं ते अपरिगृहीतागमन नामनो पहेलो अतिचार छे. १. कोइ पुरुषे थोड़ा काळने माटे कोइ वेश्याने धन आपी पोतानी करी होय, तेने सर्व साधारण स्त्री जाणी तेना प्रत्ये गमन करवुं, ते इत्वरपरिगृहीतागमन नामनो बीजो अतिचार छे. २. परस्त्रीनी साधे चुंबन, आलिंगन, कुचमर्दन विगेरे मैथुन सिवाय बीजी कोइ पण कामचेष्टा करवी, अथवा पोतानी स्त्री साधे पण कामशास्त्रमां कहेला चोराशी आसन विगेरेनुं सेवन करी कामने अधिक जागृत करवो, अथवा अतृप्त - पणे पुरुष, नपुंसक विगेरेनुं सेवन के हस्तक्रियादिकनुं करवुं, अथवा काष्ठ, फळ, माटी, चर्म विगेरेनां करेलां कामनां उपगरणो साथे क्रीडा करवी, ते सर्व अनंगक्रीडा नामनो श्रीजो अतिचार छे. ३. पोताना पुत्र पुत्री सिवाय बीजाना पुत्र पुत्रीना विवाह करवा, * अथवा पोतानी स्त्री Jain Education International * आ चोथुं अणुव्रत स्वदार संतोष नामे लीधुं होय तो पोतानी स्त्री सिवाय बीजी सर्व स्त्रीओ वर्जवानी छे, अने परदारविरति नामे व्रत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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