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भावार्थ:-समुद्रनी जेम गंभीर स्वभाववाळा, विनाश समयना पवनथी पण कोइ वखत मेरु पर्वत जेम चालतो नथी तेम उपसर्गनी परंपराथी परमात्मा कदिपण चलायमान थतां नथी, जेम शंख उज्ज्वल छे तेवी रीते पोताना गुणोथी उज्ज्वल छे, जेम हवा पोतानी इच्छा प्रमाणे स्वतंत्र चाले छे, तेवी रीते कोइनी पण रोकावट वगर स्वतंत्र रीते विहार करवावाळा छे, जीवनी गति जेम सदाय चालवानीज छे तेवीज रीते तेमनी पण गति कोइ जग्याए अटकायेल नथी अर्थात् तेमने कोइ रोकी शकतुं नथी, काचबानी जेम सर्वे इन्द्रियोने गोपाववाळा छे, जेम गेंडानुं एक शिंगडुं छे तेम ज भगवान पोते पण एकलाज छे बीजा कोइनी सहायतावाळा नथी. मू-भारंडपंखियानी परे अप्रमत्त, सिंहनी परे दुर्धष्य,
वृषभनी परे अढारसहस, सीलंगरथ धुरंधर, चंद्रमानी परे सौम्यकान्ति, सूर्यनी परे सतेज, पंखियानी परेविप्रमुक्त,कुक्षिसंबल, वसुंधरानी परे सर्वसह,
भावार्थ:-भारंड पक्षीनी जेम आळस वगरना छे, सिंहनी जेम कोइ पण वखत कोइनाथी पण हार पामवावाळा नथी, वृषभ-बळदनी जेम अढार हजार शीलांगरथनी धूरा-धूसरीने धारण करनारा छे, चंद्रनी जेम शीतलताना गुणने-तेजने धारण करवावाळा छे, सूर्यनी जेम तेजवाळा छे, पक्षिनी जेम स्वतंत्र छे. कोइनी रोक-टोकवाळा नथी, कुखमां रहेल तेज शंबल (भालु) छे जेमनी पासे तथा पृथ्वी-भूमिनी जेम तमाम बाबतोने सहन करनारा छे.
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