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शब्दार्थ
उज्झिय-त्याग कर्यो छे तिहुयण-त्रण जगतना जर-वृद्धावस्था
जण-लोकोनुं मरणाणं-तथा भरणनो
मुहियाणं-खूब सारी रीते हीत समस-बधां
करनारा दुक्खत्त-दुःखोथी
अरिहंताणं-अरिहंतोने सत्त-पीडायेलां
णमो--नमस्कार थाओ सरणाणं--(प्राणीओना) शरणरूप ताणं-रक्षण करनाराने,
उज्झियजरमरणाणं-दूर कर्यां छे जन्म, जरा अने मरण जेमणे. __ समत्तदुक्खत्तसत्तसरणाणं-तमाम दुःखोथी पोडाता प्राणीओना शरण-आश्रयस्थान.
तिहुयणजणमुहियाणं-त्रणे जगतना जीवोनुं सारी रीते हीत करनारा, तथा
अरिहंताणं णमो ताणं-रक्षण करनारा, अरिहंतोने नमस्कार थाओ.
भावार्थ-जेओए फरीवखत नहीं जन्मवानो, वृद्धावस्थानो तथा मरणनो भय सदाने माटे नाश कयों छे, तथा संसारना पारावार दुःख परंपराथी त्राय त्रायमान थइ गयेला जीव समुदायना जेओ रक्षण स्थान
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