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________________ गुलाब का दूसरा पौधा एक सन्त ने उठाकर अपनी पर्ण कुटी के सामने लगा दिया। प्रातः सूर्य दर्शन करके संत गुलाब के पौधे के निकट आकर बोलता - “ दूसरों की भलाई के लिए अपने को मिटा दो। इसी में जीवन की सार्थकता है।" उसी दिन से पौधे पर गुलाब का पहला फूल खिला, पवन के चरणों पर चढ़कर दूर-दूर तक अपनी सुरभि बाँटने निकल पड़ा, वह ! जिसने तोड़ा वही मधुर सुगन्ध से पुलकित हो उठा। आज गुलाब काँटों के लिए नहीं, किन्तु मधुर सुगन्ध के लिए विश्वविख्यात है । * * तुम चाहे अध्यात्म पथ के साधक हो, या समाज के कार्यकर्ता, अपना जीवन इतना हल्का और सादा रखो कि वह न तो परिवार या समाज पर भार बन कर पड़े, और न ही उसकी चमक-दमक से किसी की आँखें चुँधियाँ जाएँ । * अहिंसा, अपरिग्रह की माता है । जिस अहिंसा की साधना से अपरिग्रह भाव का जन्म नहीं होता, जनता का शोषण बन्द नहीं होता, वह अहिंसा वन्ध्या है । इस प्रकार की निष्प्राण और वन्ध्या अहिंसा से जनता का कल्याण नहीं हो सकता । * * आस-पास में बिखरी हुई जनता के प्रति यदि तुम्हारे मन में कुछ भी दया या अहिंसा की भावना जगी है, तो सबसे पहला कार्य यह करो कि तुम अपने आपको 'समेट' लो | जितने अंश में जनता का शोषण कम होगा, उतने ही अंश में उसके सुख फल-फूल सकेंगे 1 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only अमर डायरी www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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