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________________ और फूलों को खुले उपवन में, डालियों पर क्यों खिला दिया? स्वर्ण की मोहकता मनुष्य के दुःख का कारण है। और फूलों की मोहकता, मनुष्य के आनन्द का कारण। जीवन का ध्येय त्याग है, भोग नहीं; श्रेय है, प्रेय नहीं; वैराग्य है, विलास नही; प्रेम है, प्रहार नहीं। जिस प्रकार धरती के नीचे सागर बह रहे हैं, पहाड़ की चट्टान के नीचे मीठे झरने बह रहे हैं, उसी प्रकार क्रूर मनुष्य के अन्तर मन में भी मानवता का अमृतस्त्रोत बह रहा है । क्या मालूम, कब फूट पड़े। मनुष्य, तू अपने अन्दर की अनन्त शक्ति को जागृत कर, सारा भूमण्डल तेरे एक कदम की सीमा में समा जाएगा। घृणा को प्रेम में, द्वेष को मैत्री में, अंधकार को प्रकाश में, मृत्यु को जीवन में, और नरक को स्वर्ग में बदलने की क्षमता तेरे अन्दर में ही है । आवश्यकता है प्रसुप्त शक्ति को जागृत करने की। गुलाब के दो पौधे किसी सरोवर के किनारे पर शैशव की पहली अंगड़ाई भर कर मुस्करा रहे थे। __ एक सम्राट ने उन सुकुमार एवं सुन्दर पौधों को देखा, और एक पौधा उठाकर अपने महलों में शयन कक्ष के सामने रखवा दिया। प्रात: उठते ही सम्राट पौधे के निकट आकर पहला सूत्र बोलता-“दुष्ट को दुष्टता से जीतना चाहिए, अन्यथा वह तुम्हारे अस्तित्व को ही मिटा डालेगा।" उसी दिन से पौधे ने अपनी सुरक्षा के लिए काँटे पैदा किए, जो उसकी ओर बढ़ने वाले हाथों में चुभने लगे। अमर डायरी 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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