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जीवन की चढ़ाई में तुम परिवार और समाज के कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों का बोझ लेकर चढ़ रहे हो, तो चढ़ो ! किन्तु उस बोझ को अपनी पीठ पर रखो, छाती पर नहीं !
पीठ पर वजन लेकर चलने वाला धीरे-धीरे मंजिल तक पहुँच जाता है, किंतु छाती पर वजन ले लिया तो? एक कदम चलना तो बड़ी बात है, वहीं दम तोड़ दोगे !
उत्तरदायित्वों को निष्काम भाव से उठा रहे हो, तो वह बोझ पीठ पर है। किन्तु उसमें किसी प्रकार का क्षुद्र स्वार्थ घुस गया, तो वह बोझ तुम्हारी छाती पर चढ़ जाएगा।
पर्वत की गहन घाटी में एक फूल हँस रहा था। मधुर सौरभ से आसपास का वायुमण्डल महक-महक कर रहा था। भ्रमर-बालाएँ गुंजार करती हुई मंडरा रही थीं। __ एक सहृदय कवि ने देखा, तो पूछ बैठा-इस विजन, गहन घाटी में किसने निमंत्रण दिया था इन भ्रमर-बालाओं को?"
तभी गुंजार करती हुई एक भ्रमर-बाला बोल उठी-“गुणों के कदरदान बिना बुलाए ही आते हैं।"
मनुष्य ! तू काम कर, कामना मत कर ! काम (कार्य) मनुष्य को ऊपर उठाता है, किन्तु कामना नीचे गिरा देती है।
अगर तुम फूल की तरह हँसना-खिलना जानते हो, सद्गुणों की सुगन्ध से वातावरण को महकाना जानते हो, तो प्रशंसा करने वालों और प्रतिष्ठा देने वालों की टोली अपने आप तुम्हारे इर्द-गिर्द जमा हो जाएगी।
दुनिया कदरदान है, मगर काबिले कद्र भी तो मिलना चाहिए।
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अमर डायरी
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