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________________ दूसरों को नीचा दिखाकर, ऊँचा होना, क्या ऊँचा होना है ? तू प्रतिस्पर्धियों से श्रेष्ठ बनकर ही अपने को ऊँचा उठाने का प्रयत्न कर ! यदि इस उच्चता की लड़ाई में सफलता न भी मिली तब भी सम्मान तो अवश्य प्राप्त होगा ही ! यदि ऊँचे तरीकों से उठने का प्रयत्ल किया, तो एक-न-एक दिन अवश्य ही तू ऊँचा उठ सकेगा ! साधना के अमृत रस में क्रोध या अन्धकार का वही स्थान है, जो कि हलवे में कड़वे नीम का ! देखो यह गाँव के घूरे पर समूचे गाँव का कूड़ा-कचरा इकट्ठा हो रहा है, गन्दगी फैल रही है, बदबू के मारे दम घुट रहा है, और कितने कीड़े कुल-बुला रहे हैं। ___ अब उधर देखो, एक निन्दक के मनरूपी घूरे पर पूरे गाँव के पापों का कूड़ा-कचरा इकट्ठा हो गया है। उसमें असद् भावों की गंदगी फैल रही है, दुर्वचनों की दुर्गन्ध मार रही है और मात्सर्य तथा द्वेष के कीड़े कुल-बुला रहे हैं। अपने मन को अच्छाइयों की खुशबू से भरा बगीचा नहीं बना सकते हो, तो कम से कम गाँव का घूरा तो मत बनाओ। जो वास्तव में तत्वज्ञानी हैं, उनकी बातों में परस्पर विरोध नहीं हो सकता। सत्य तो एक ही है, भले ही वह भिन्न-भिन्न वाणियों के माध्यम से कितना ही क्यों न विभिन्न रूप से अभिव्यक्त हो। शब्द-शरीर भिन्न दीखते हुए भी उसकी आत्मा एक ही रहती है। ___ जहाँ सत्य में विरोध लगता हो वहाँ समझ लो सत्य को प्रकट करने वाला ही अधूरा ज्ञानी है। जो भ्रान्ति की बात कर रहा है वह स्वयं भी जरूर भ्रान्त होगा। अमर डायरी 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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