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________________ बात चलती है, तो पैसेन्जर गाड़ी की तरह अनेक स्टेशनों पर रुकती, ठहरती चलती है। एक दिन चर्चा चलती-चलती आ गई पुरानी और नई पीढ़ी पर ! और वह भी स्त्री जाति की पीढ़ी पर ! एक ने कहा-पुरानी स्त्री मोमबत्ती की तरह थी, खुद जलती, पर दूसरों को प्रकाश देती थी। ___ नई स्त्री जुगनू की तरह है, जो इधर-उधर उड़ती हुई अपनी चमक दिखाकर समाज में संभ्रम पैदा करती रहती है। उपवास के पारणे में जो आनन्द आता है, वह यह प्रकट करता है कि विषयों के प्रति अन्दर में जो मोह छिपा है वह उपवास से कम नहीं हुआ ! मक्खन किससे निकला? छाछ (मट्ठा) से ! एक बार अपना रूप लेने के बाद फिर उसे छाछ में कितना ही डालो, वह छाछ नहीं बनता। सच्चे साधक का जीवन ऐसा ही होता है । वह संसारी जीवों में से आता है, पर एक बार साधक बन जाने के बाद, फिर भले ही संसारी जीवों में रहे, किन्तु पुन: संसारी नहीं बनता। वृक्ष का मूल जमीन में रहता है, और शाखाएँ, पत्ते, फूल, फल बाहर विस्तृत आकाश में फैले रहते हैं। साधु का व्यवहार जनता में (समाज में) फैला रहता है, किंतु उसका मन तो अन्दर में ज्ञान ध्यान की गहराई में आबद्ध रहता है। * पक्षी हमेशा वृक्ष की ऊँचाई पर ही रहते हैं, किंतु जब उन्हें दाना चुगना होता है तो नीचे जमीन पर उतरते हैं। साधु अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति के लिए संसार की भूमिका से सम्बन्ध जोड़ते हैं, किंतु उनका मन तो सदैव ज्ञान और भक्ति की ऊँचाई पर ही रहता है। * अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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