SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अब महात्मा ने उत्तर की ओर पैर कर दिए, तो तीसरे ने कहा-उत्तर दिशा में बदरीनारायण भगवान का तीर्थ है, उधर पैर नहीं करना चाहिए। . ___ महात्मा के पैर अब दक्षिण की ओर घूम गए, तो चौथे सज्जन बोल पड़े—महात्मा जी ! इधर तो रामेश्वरम् है । ___ महात्मा हड़बड़ा गए । अब तो शीर्षासन लगा दिया, पैर ऊपर और सिर नीचे। किन्तु तब भी तो चैन नहीं। कहा एक यात्री ने-“ऊपर आकाश में सूर्य हैं, चन्द्र हैं, और सब देव हैं। भगवान विष्णु बैकुण्ठ में विराजमान हैं। उनकी तरफ पैर ! कैसा अज्ञान है?" ___ महात्मा सीधे खड़े हो गए, तो भी लोग कहाँ चुप रहने वाले थे? एक सज्जन बोले-नीचे शेषनाग हैं । उस पर भगवान विष्णु शयन करते हैं। उनकी तरफ पैर करना महान पातक है। __ अब तो महात्मा चकराए और बोले-तुम लोगों में से किस-किस की बात मानूँ ! सब ओर देवी देवता हैं । बताओ, क्या करूँ और क्या न करूं? __ दुनिया दुरंगी है। इसका समाधान होना असंभव है। हमें अपने विवेक की आँख खोलकर चलना चाहिए। दुनिया की बातों के चक्कर में फँस गए तो उससे उद्धार होना कठिन है। * जीव प्रत्येक समय नये कर्म बांध रहा है, और प्रत्येक समय पुराने कर्म भोग भी रहा है। भोगना तो निश्चित है, अपने वश का नहीं, है, वह अटक नहीं सकता। परंतु बंधन की क्रिया, अपने हाथ में है, उसे अटकाना चाहें तो अटका सकते हैं। तू भोग की चिन्ता मत कर ! किन्तु जो नया बंध प्रति क्षण हो रहा है उसे रोकने का प्रयत्न कर ! मुक्ति का यही 'शार्टकट' (सीधा) रास्ता है ! * 28 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy