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________________ पाँच भूतों का शरीर तेरा घर है। काल की सूचना आने पर प्रसन्नतापूर्वक उन्हें सौंप दे, और परलोक की यात्रा के लिए तैयार रह ! सुनो ! मैं तुम्हें तप का एक प्रत्यक्ष चमत्कार दिखाता हूँ। आज आकाश में बादल मंडराए हैं। गुरु गम्भीर गर्जन करते नील जलद कितने लुभावने हैं। यह घटा उमड़ कर आ रही है। जानते हो, अमृत समान मीठे जल की गागर भर कर कहाँ से ला रही है वह ? जिस जल की धारा से धरती हरी-भरी हो जाती है, खेतों में धान लहलहा उठता है, प्यासे प्राण तृप्त हो जाते हैं, वह जल श्याम घटा के पास कहाँ से आया है ? दहकते जेठ के प्रचण्ड सूर्य की उत्तप्त किरणों के नीचे समुद्र ने अपना वक्षःस्थल खोल कर तपाया था, अपनी बाहें फैलाकर सूर्य की ममी को, उष्णता को अपने तन में समाया था। बस, इस कठोर तप ने ही उसके खारे जल को अमृत-समान मीठा बनाया, और बादलों को दिया। बादलों ने धरती को दिया, और धरती ने तप के प्रत्यक्ष चमत्कार की यह कहानी अपने नक्-पल्लवों के माध्यम से हमें सुनाई है ! दर्पण के सामने क्या प्रतिबिम्बित होगा? जैसा दृश्य सामने आएगा। यदि सिंह आएगा तो वह सिंह बन जाएगा, गीदड़ आएगा तो गीदड़ ! __ मन भी दर्पण है, इसलिए मन के सामने सदैव सदाचारी महापुरुषों के दिव्य स्वरूप को रखो। महान् आत्माओं की स्मृति मन को निर्मल बनाए रखने का अचूक दिव्य मंत्र है। एक व्यक्ति पहाड़ों का भ्रमण करके लौटा है, ऊँचे से ऊँचे पर्वत शिखर पर उसने चढ़ाई की है। कहता था कि पर्वत की चोटी पर खड़े होकर देखने से नीचे वाले (धरती पर चलने वाले) कुत्ते और बिल्ली जैसे दिखाई देते हैं। मैंने उससे पूछा, किं क्या नीचे वालों को भी वे (ऊपर वाले) कौओ और चील जैसे नहीं दिखाई देते ? अमर डायरी 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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