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नारी का उद्धार मातृ शक्ति का उद्धार है, मातृ शक्ति का उद्धार भावी प्रजा का उद्धार है, भावी प्रजा का उद्धार प्रत्येक परिवार, समाज, राष्ट्र, धर्म और संस्कृति का उद्धार है ।
नारी राष्ट्रोत्थान के महल की पहली ईंट है। अतएव नारी सुधरी तो सब कुछ सुधरा, नारी बिगड़ी तो सब कुछ बिगड़ा । नारी की अवहेलना, मानवता की अवहेलना है ।
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संस्कृत की एक सूक्ति-तारिका आज चिन्तन के क्षितिज पर जगमगा रही है । “अविवेकः परमापदां पदम् " - अविवेक विपत्तियों का भण्डार है, जीवन के हर एक क्षेत्र में विवेक जरूरी है । खाना, पीना, बोलना, सोना, यहाँ तक कि हँसी-मजाक भी विवेक- पूर्वक ही होना चाहिए। अविवेक नंगी तलवार है, कभी भी उससे विनाश का निमंत्रण आ सकता है । आज अखबार में एक खबर पढ़ी, कि साली के मजाक ने जीजा की जान ले ली। मध्य प्रदेश के बाँरा गाँव की घटना है। भोजन करके जीजा नीम के नीचे खाट बिछाकर आराम कर रहा था । साली ने आकर एक पैर में रस्सी बाँधकर उसे नीम के पेड़ से बाँध दिया, और दूसरे पैर की रस्सी बाँध दी भैंस से । और फिर साली ने मजाक के मूड में भैंस को डंडा मारा तो भैंस भागी और बेचारे जीजा की टांगें चिर गईं। वहीं जीवन लीला समाप्त ।
कितनी दर्दनाक घटना ! अविवेक ने क्या से क्या कर दिखाया !
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जीवन जितना दीखता है उतना ही नहीं है, वह अनन्त है । मनुष्य तात्कालिक क्षणिक लाभ के लिए जो लोभ, मोह, क्रोध, भय के चक्कर में पड़ता है, वह अपना अपघात करता है। अपघात करने पर ही अपघाती नहीं होता, प्रत्युत
अमर डायरी
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