SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिसमें मानवता का ऊर्ध्वमुखी विकास अपनी चरम सीमा को सजीवता के साथ स्पर्श कर सकता हो, वही विश्वजनीय संस्कृति, विश्व-संस्कृति के स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हो सकती है। श्रमण-संस्कृति का आदर्श श्रमण-संस्कृति का यह अमर आदर्श है कि जो सुख दूसरों को देने में है, वह लेने में नहीं। जो त्याग में है, वह भोग में नहीं। श्रमण-संस्कृति और पापी श्रमण-संस्कृति दानव को मानव के रूप में बदल देने की पवित्र शक्ति में विश्वास रखती है। उसका आदर्श संहार नहीं, सुधार है। उसकी भाषा में दण्ड का अर्थ बदलना नहीं, उद्धार है । जिस दण्ड के पीछे अपराधी के प्रति दया न हो, सुधार की भावना न हो, केवल बदले की क्रूर मनोवृत्ति हो, वह दण्ड पाप है, स्वयं एक अपराध है। वस्त्र यदि मलिन हो जाए, तो क्या उसे नष्ट कर दिया जाए? मैले वस्त्र को साफ किया जाता है, और पहनने के योग्य बना लिया जाता है। मनुष्य भी अपराध के द्वारा मैला हो जाता है। अत: उसे भी सस्नेह धोकर साफ करो, और शुद्ध मानव बना कर जन-सेवा के क्षेत्र में काम आने योग्य बनाओ। श्रमण-संस्कृति अपराधी के प्रति अधिक दयालुता का व्यवहार करती है, उसी प्रकार, जिस प्रकार कि रोगी के प्रति किया जाता है। अपराध भी एक मानसिक रोग ही है, अत: तदर्थ दण्ड के रूप में अपराधी के लिए सुधार चाहिए, संहार नहीं। मानव और अदृश्य शक्ति मनुष्य जीवन में किसी अदृश्य शक्ति का हाथ नहीं है। मनुष्य किसी के हाथ का खिलौना नहीं है। वह अपने आप में एक स्वतन्त्र विराट् शक्ति है। वह अपने आप को बदल सकता है, समाज को बदल सकता है, राष्ट्र को बदल सकता है। और तो क्या, विश्व को बदल सकता है। नरक, को स्वर्ग बना देना मनुष्य के लिए एक साधारण-सा खेल है। अमर डायरी - 175 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy