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________________ पोषण का स्वर है, समता का स्वर है, इसलिए उसका उद्घोष है-सर्व भोग्या वसुन्धरा। दण्ड : बनाम प्रायश्चित्त जैन धर्म दण्ड में विश्वास नहीं करता। आप कहेंगे कि उसमें भी तो दण्ड-व्यवस्था है ! किन्तु मेरा नम्र विचार है कि उसका हृदय समझने वाला यह जानता है कि वहाँ जो प्रायश्चित विधान है, उसकी रूपरेखा क्या है ? दण्ड और प्रायश्चित में महान् अन्तर है । दण्ड दिया जाता है, और प्रायश्चित किया जाता ___दण्ड अपराधी पर लादा जाता है, उसका हृदय स्वयं को दोषी नहीं मानता है, फिर भी कानून जो लूला होता है, सिर्फ गवाह और सबूत के सहारे चलता है, उसे दण्डित करता है, दण्ड थोप देता है। प्रायश्चित्त में अपराध की स्वीकृति होती है, अपराध पर ग्लानि होती है, और पुन: न करने का संकल्प होता है। जैन धर्म में आचार्य या शासक का काम इतना ही है कि उसे आँख दे दें, वह आँख; जिससे व्यक्ति अपने अपराध को देख सके। वह रोशनी जिसके प्रकाश में अपराधी अपनी भूलों का विश्लेषण कर सके । जब उसका अन्तर्मन जागृत हो जाता है, तब स्वयं या आचार्य के समक्ष व अपनी भूलों पर, अपने अपराध पर, पश्चात्ताप करता है, उसकी विशुद्धि करता है, और पुन: न करने का संकल्प लेता है। ___ इस प्रकार दण्ड और प्रायश्चित की पृष्ठभूमि का अन्तर हमें समझ लेना चाहिए। काम का तरीका एक बालक से पूछा गया जिस काम को तुम्हारे माता-पिता अलग-अलग करें तो एक घण्टे में कर सकते हैं, यदि उसी काम को दोनों मिलकर करें तो कितनी देर में कर लेंगे? - 158 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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