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भरोसा कर लिया, अन्तर का विश्वास जग गया तो फिर एक झटका भर देने की जरूरत है, मुक्ति का अनन्त आकाश उसके लिए खुला पड़ा है।
सर्व-भोग्या वसुन्धरा .. एक बार आगरा के आर्य समाज भवन में सर्व-धर्म सम्मेलन का आयोजन किया गया। मेरा अनुभव तो यह है कि बहुधा सर्वधर्म सम्मेलन के मंच पर सर्वधर्म खण्डन का ही अभिनय किया जाता है । धर्म वाले अपने धर्म की प्रशंसा के साथ ही दूसरे धर्म का खण्डन भी कर जाते हैं। ___ हाँ तो, मैं कह रहा था कि उस सर्वधर्म सम्मेलन में मुझे भी भाषण देने के लिए निमन्त्रित किया गया। मैं जिस स्थान पर बैठकर भाषण कर रहा था उसके सामने दीवार पर लिखा था-"वीर-भोग्या वसुन्धरा"-इसका अर्थ है, जो वीर है-शक्तिशाली है, वही संसार के ऐश्वर्य का उपभोग कर सकता है।
मैने भाषण प्रारम्भ करते हुए कहा–यदि एक शब्द में जैन धर्म का निचोड़ कहूँ, तो वह शब्द यह है कि-जहाँ 'वीर' शब्द है, उसे निकाल कर उसी स्थान पर 'सर्व' शब्द रख दिया जाए। जैन धर्म का उद्घोष है कि विश्व में जो ऐश्वर्य है, सुख-साधन है, उसे भोगने का सबको समान अधिकार है। 'वीर' शब्द तलवार को उत्तेजना देता है, जिसकी लाठी उसकी भैंस-इस सिद्धान्त का पोषक है। किन्तु मेरा कहना है कि इस सिद्धान्त में कौन-सी बड़ी बात है ? दुनिया के सब प्राणी जानते हैं-जंगल का खूखार शेर भी इस सिद्धान्त को जानता है, समुद्र में रहने वाला मच्छ तथा आकाश में उड़ने वाला पक्षी भी इसे जानता है। यह मत्स्य गलागल न्याय तो सर्वत्र चल ही रहा है। फिर 'वीर-भोग्या वसुन्धरा' में धर्म का क्या सन्देश रहा । धर्म संसार के पटाक्षेप पर एकाधिपत्य जमाना नहीं सिखाता, वह सिखाता है प्राप्त पदार्थों को सब में बाँट कर उनका उपयोग करना, तथा सब प्राणियों का पोषण करना । जैन धर्म का स्वर अमर डायरी
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