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________________ तो वह शरीर बल सिर्फ भार बढ़ाने वाला ही होता है, तेजस् और वर्चस्व नहीं बढ़ाता । गणधर गौतम भ. महावीर से एक प्रश्न पूछते हैं- भगवन् ! दो मनुष्य बराबर बलवान दीखते हैं, हट्टे-कट्टे लगते हैं, उनकी माँस-पेशियाँ मजबूत हैं, हड्डियाँ सुदृढ़ दिखाई पड़ती हैं, किन्तु जब परस्पर लड़ते हैं तो एक हार जाता है और एक जीत जाता है, कभी-कभी कमजोर और दुर्बल दिखाई देने वाला मोटे-ताजे सुदृढ़ शरीर वाले को पछाड़ देता है, इसका क्या कारण है ? गौतम का यह प्रश्न भगवती सूत्र में आया है। भगवान महावीर उत्तर देते हैं— गौतम ! तुम माँस-पिण्ड और हड्डियों के ढाँचे को देखकर ऐसा सोचते हो, किन्तु जिसके अन्दर वीर्यशक्ति, उत्साह और ओज होता है, प्राण बलवान होते हैं, वही विजयी होता है " सवीरिए परायणइ, अवीरिए पराजयई । " वीर्यशक्ति वाला जीतता है, और निर्वीय हार जाता है चूँकि मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत यही है। उसे ही जीवनी-शक्ति माना है। इसीलिए वीर्य की रक्षा को जीवन और प्राण रक्षा माना है । शिव और शव मुझे कहना है कि जिन्दा और मुर्दा आदमी में जो अन्तर है, वह यही है कि जिन्दा आदमी स्वयं चलता है, जीवन के क्षेत्र में वह कभी पिछड़ता नहीं, संघर्षों और विपत्तियों से टकराकर भी वह निराश नहीं होता, बल्कि आगे से आगे बढ़ता जाता है। इसके विपरीत मुर्दा आदमी ( हतोत्साह ) प्रेरणा पाकर भी उठता ही नहीं, उसे जबरदस्ती से घसीटा जाता है, उसे दूसरा कहीं घसीट कर भले ही ले जाए, पर वह अपने आप नहीं चल सकता, इस प्रकार जीवित मनुष्य लड़ता है, और मुर्दा सड़ता है । जब तक उसमें उत्साह है, शक्ति है, तब तक वह 'शिव' है, महान् है, समर्थ है, और जब शक्ति नहीं रहती, उत्साह खत्म हो जाता है तो वह शिव 'शव' बन जाता है। शिव और शव में 'इकार' अर्थात् शक्ति का ही अन्तर है । 144 Jain Education International For Private & Personal Use Only अमर डायरी www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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