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________________ तपस्या सौदा नहीं है त्याग और तपस्या का यह अर्थ नहीं है कि उपवास के पहले और दूसरे दिन के धारणे-पारणे में मिलने वाले प्रकाम रस की मधुर कल्पनाओं से मन को गुदगुदाया जाए। यदि खाने-पीने के लिए ही तपस्या की जाती है, तो यह काम तो उसके बिना भी हो सकता है। ___ हजारों लाखों का दान करने वाले यदि इस भावना से करते हैं कि वे इस लोक में यशस्वी और परलोक में शालिभद्र के समान ऋद्धिशाली बनेंगे, तो मैं कहता हूँ, वे धोखे में हैं। यदि कोई पली का त्याग करके इसलिए ब्रह्मचारी बनता है कि यहाँ पर वह ब्रह्मचारी बनकर पूजा भी जाए, और स्वर्ग में अप्सराएँ, देवांगनाएँ उसकी प्रतीक्षा में फूल मालाएँ लिए खड़ी रहें, तो मेरा निवेदन है कि वे ब्रह्मचारी जी जरा सोच लें । ___ जैन धर्म ने त्याग, तपस्या और दान को सौदा नहीं माना है । यहाँ का योग, भोग के लिए नहीं, किन्तु अयोग के लिए है । मुक्ति, मुक्ति के लिए नहीं, किन्तु विमुक्ति के लिए है। इस विषय में सौदेबाजी करने वाले न इधर के रहे न उधर के रहे न खुदा ही मिला न विसाले सनम । भगवान् महावीर की भाषा में—“नो हव्वाए, नो पाराए।" न इस जीवन में ही कुछ सुख भोग सकेंगे, और न अगले जीवन में। . ___ इसलिए त्याग निष्काम होना चाहिए। मुक्ति के लिए होना चाहिए और उस .. मुक्ति की परिभाषा होनी चाहिए-वासनाओं से मुक्ति, कषायों से मुक्ति, रूढ़ परम्पराओं से मुक्ति और सर्व विभावों से मुक्ति !! अपना सुधार : मनुष्य की दुर्बलता समझिए या कुछ आदत समझिए कि वह हमेशा दूसरों की चिन्ता करता है । संस्कृत की एक सूक्ति है "गिरेहो दृश्यो न च पदतलस्येति विदितम्।' 116 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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