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________________ अज्ञानी सिर्फ कर्मों का कर्ता ही नहीं, किन्तु जो कुछ नहीं करता है, उन कर्मों का भी अपने को निमित्त मानकर मिथ्या गर्व करता रहता है । * * * अकर्मण्यता जीवन को तेजोहीन कर देती है। निष्क्रिय और निठल्ले व्यक्ति का जीवन ऐसा सुनसान लगता है जैसा कि मनुष्यों से रहित सूना घर हो । * * भगवान महावीर ने साधक को कर्तव्य और कर्मण्यता की ओर उत्प्रेरित करते हुए कहा है-किरियं रोयए धीरो— क्रिया - अर्थात् कर्मण्यता में रस लेते रहो । अपना सत्कर्तव्य करो, और उसे दिलचस्पी - रुचिपूर्वक करो । * * एक भारतीय तत्त्वद्रष्टा ने तो जीवन की कर्मण्यता को ही तेज माना है । जो निष्क्रिय बैठा-बैठा अन्न खाता है, वह अन्न नहीं, किंतु पाप खाता है— पापो नृषद्वरो जन: (ऐतरेय ब्राह्मण) । काम से जी चुराने की वृत्ति आत्मघाती वृत्ति है । श्री प्रेमचंद ने एक कहानी में दो ऐसे व्यक्तियों का चित्र उपस्थित किया है— जो हट्टे-कट्टे समर्थ होते हुए भी जीवन भर दरिद्रता और भुखमरी के चक्र में पिसते रहे। उनमें से एक पिता था, जो एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता, और दूसरा था पुत्र, जो एक घण्टा काम करके दो घंटा तक चिलम पीता रहता। गांव भर में लोग उनकी काम से जी चुराने की आदत को जानते थे और इसलिए कोई उन्हें काम पर नहीं लेता था । इधर पिता पुत्र की यह शिकायत थी कि गांव में उन्हें कहीं काम-रुजगार नहीं मिलता । और इसी शिकायत की कुदन लिए वे जन्म भर दाने-दाने को तरसते रहे। जीवन में एक दिन भी उन्होंने पेट भर अन्न नहीं पाया, क्योंकि जीवन में एक दिन भी उन्होंने निष्ठापूर्वक श्रम नहीं किया । लक्ष्मी उसी के पास आती है जो निष्ठापूर्वक श्रम करता है - नानाश्रान्तस्य श्रीरस्ति — जो श्रम नहीं करता, उसे लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती । * अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only 101 www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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