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________________ मनोविज्ञान के अनुसार—मनुष्य आत्म-हत्या की ओर तब प्रेरित होता है जब वह आत्म-नियंत्रण की शक्ति खो देता है। जो अपने मानसिक आवेग एवं उद्वेग पर नियन्त्रण रख सकता है, वह किसी भी विकट परिस्थिति का मुकाबला करने में समर्थ रहता है। धन, बल और बुद्धि जहाँ हार जाते हैं, वहाँ सिर्फ आत्म श्रद्धा ही मनुष्य को सहारा देकर संकटों से उबार सकती है। जो दूसरों की हानि करके भी अपना लाभ करना चाहता है—वह निकृष्ट कोटि का मनुष्य है। जो अपना लाभ करे, किंतु दूसरे को हानि न पहुँचाए, वह मनुष्य मध्यम कोटि में आता है। ___जो अपने लाभ से दूसरों को भी लाभ पहुंचाने का प्रयल करता रहे, वह उत्तम मनुष्य है। कार्य करने की ये तीन पद्धतियाँ हैं। यदि आप तीसरी पद्धति को न अपना सकें, तो कम से कम पहली पद्धति को भी मत अपनाइए। भौतिक आकांक्षा मनुष्य को भटकाती है। वह अपने अहं और ममत्व की पूर्ति में सुख की अनुभूति करके मन को शान्त करने की चेष्टा करता है। किंतु यह शान्ति और सुखानुभूति वैसी ही है-जैसे शरीर को खुजलाकर खाज का रोगी कुछ क्षण के लिए शान्ति अनुभव करता है। ज्ञानी और अज्ञानी में क्या अन्तर है ? दोनों ही देह में समान हैं, अन्य बाहरी अन्तर भी कुछ विशेष नहीं, जो दोनों में भेद कर सके? ज्ञानी-मन, इन्द्रिय और देह आदि के द्वारा कर्म करता भी अपने को कर्तृत्त्व के अहंकार से निर्लिप्त रखता है, वह कर्ता हुआ भी अकर्तापन की अनुभूति करता है। - 100. अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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