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________________ जब तू जागे तभी सबेरा ५५ पतन हुआ है । नारी के मरण-पर्व में से जिनके वैराग्य का उदय हुआ है, वे क्या अपनी आत्मा को साध सकेंगे और क्या संसार को संदेश दे सकेंगे ? जो जन्म से ही रंकता के, गरीबी के दुर्भर भार से कराह रहे हैं ? वे कैसे अपने जीवन के राजा बन सकेंगे ? इस वैराग्य से आत्मा का उत्थान नहीं, पतन ही होता है। यह वैराग्य मसानिया वैराग्य हैं, अन्तस्तत्व के तलछट से उभरने वाला वैराग्य नहीं। जैनधर्म का वैराग्य जब जीवन और जगत् के भौतिक पदार्थों को क्षणिक, क्षणभंगुर और अशाश्वत की संज्ञा देता है, तब उसका मतलब यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वह मनुष्य के जागतिक दायित्वों की उपेक्षा करता है। उसकी क्षणिकता का तात्पर्य यह है कि मनुष्य भोग-विलास, राग-रंग और विषय-कषायों में ही आसक्त न बना रहे । वह भौतिक धरातल से ऊपर उठ कर अध्यात्म की ओर बढ़े। महावीर का वैराग्य एक ओर अनासक्ति का संदेश लेकर आया है, तो दूसरी ओर वह मनुष्य के झूठे अहंत्व पर भी करारी चोट जमाता है। गाड़ी के नीचे चलने वाला कुत्ता अगर यह सोचे कि-मैं ही इसे खींच रहा हूँ, तो यह उसका झूठा अभिमान है। इसी प्रकार मनुष्य यह समझे कि परिवार व समाज की गाड़ी मेरे बल-बूते पर ही चल रही है। इसलिए तो जैनधर्म का वैराग्य कहता है कि यह कथन तेरा अहंत्व से भरा है। विश्व में मानव ! तेरा अस्तित्व ही कितना है ? तेरा जीवन तो मृत्यु की शूली की नोंक पर लटक रहा है। फिर भी इतना अभिमान ! देवों का अपार बल-वैभव भी जब काल के महाप्रवाह में स्थिर नहीं, तो तेरा परिमित बल व वैभव क्या हस्ती रखता है ? जीवन क्षण-क्षण और पल-पल मृत्यु के वेगवान प्रवाह में बह रहा है। - मैं आप से कह रहा था कि महावीर का वैराग्य पतन का नहीं, उत्थान का वैराग्य है। वह मनुष्य के मन में छपे हुए झूठे अहंकार को तोड़ता है, वह अनासक्ति का संदेश देता है और जन-जीवन में जागृति का जयघोष करता है । वह कहता है-“मानव ! जब तू जागे तभी तेरे जीवन का सुनहला प्रभात है । जब तू जागे तभो सबेरा। जीवन के क्षणों में जब भो तेरी मोह ममता की नींद खुले, तभी तू जीवन की सही दिशा को पकड़ कर अपने कदम बढ़ा चल।" लाल भवन, जयपुर ६-७-५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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