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________________ ध्येय-हीन जीवन, व्यर्थ है ३७ छोड़ती है ? तो वह कहेगी — क्योंकि यह मेरा स्वभाव है । मैं जलती रहूँगी, पर दूसरों को आनन्द देती रहूँगी । यही मेरे जीवन का ध्येय है । मोमबत्ती की भी यही दशा है । वह स्वयं जलती है, पर दूसरों को प्रकाश देती है । प्रकाश देना उसके जीवन का ध्येय बन गया है । कण-कण करके जलने वाली मोमबत्ती मुक्त-भाव से अपने प्रकाश-धन को बिखेरती रहती है | जलाने वाले से मोमबत्ती कहती है " बहारें लुटा दीं, जवानी लुटा दी । तुम्हारे लिये जिन्दगानी लुटा दी || " कवि कहता है - मोमबत्ती का जीवन भी क्या जीवन है ? वह अपना यौवन, अपना वसन्त और अपना जीवन, जलाने वाले इन्सान को अर्पित कर देती है । जब तक उसका जीवन शेष रहता है, निरन्तर वह प्रकाश की किरणें बिखेरती ही रहती है- यही उसके जीवन की शान है । इसी तरह मनुष्य वह है, जो दूसरों के रुदन को हास में परिणत कर दे । जो हृदय में स्नेह की सुरभि रखता है और बुद्धि में विवेक का प्रकाश लेकर जीवन यात्रा में चलता रहता है । मनुष्य का यह स्वभाव होना चाहिए कि वह इस संसार - सदन में अगरबत्ती के समान महके और मोमबत्ती के समान जले । परिवार, समाज और राष्ट्र की दुर्गन्ध और अन्धकार को दूर करता रहे - यही मानव जीवन का ध्येय है । मनुष्य और पशु में क्या भेद है ? यही कि पशु डण्डे से हांका जाता है और मनुष्य विवेक से स्वयं चलता है। बिना विचार और विवेक के पशु और मानव में भेद - रेखा नहीं रहती । फूल का निवास कांटों की सेज पर होता है। गुलाब का फूल कितना मोहक होता है । परन्तु उसके चारों ओर कांटे खड़े रहते हैं । वह कांटों में भी मुस्कराता है । कांटों की सेज पर बैठा भी हँसता रहता है मनुष्य का जीवन भी गुलाब का फूल है, जिसमें स्नेह की सुरभि और सत्य का सौन्दर्य है । परिवार और समाज की समस्यायें वे काँटे हैं, जिसमें जीवन गुलाब घिरा रहता है । परन्तु साहसी मनुष्य कभी व्याकुल नहीं होता । वह विकट संकटों में भी हंसता ही रहता है। अनुकूल वातावरण में मुस्कराना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात है, प्रतिकूलता में भी अपने मन को प्रसन्न और शान्त रखना । यदि मनुष्य ऊँचे पद पर पहुँचकर नम्रता और शिष्टता को भूला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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