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________________ ३५ काल पूजा, धर्म नहीं अनुसार व्यवस्था कर लेनी चाहिए। सादड़ी सम्मेलन में जिस भावना का आधार लेकर हमने निर्णय कर लिया है उसका पालन होना आवश्यक ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य भी है । श्रमण संघ के अनुशासन का परिपालन हमारे लिए महान् धर्म है, भले ही हमसे विपरीत मतवालों की दृष्टि में वह निर्णय योग्य न भी हो । एक ओर श्रमण संघ के संविधान का अनुशासन और दूसरी ओर विरोधी मत की कटु और तीव्र आलोचना का भय । परन्तु हमें विचारना यह होगा कि इन दोनों में से हमें कौन-सा पक्ष वरेण्य है । आज के श्रमण संघ को ओर श्रावक संघ को यही निर्णय करना है। याद रहे होनहार परम्परा के अग्रदूत श्रमण संघ का इतिहास यों लिखेंगे - " श्रमण संघ अपने अनुशासन में सुदृढ़ रहा, कटु आलोचना और तीव्र भर्त्सना के बावजूद भी ।" अथवा - " श्रमण संघ का बालू का किला ढह गया, विरोधी मत की कटु आलोचना और तीव्र भर्त्सना से ।" आज के श्रमण संघ को अपने भविष्य के भाल-पट्ट पर क्या लिखवाना अभिप्रेत है ? इसका सुदृढ़ निर्णय उसे आज या कल में करना होगा । लाल भवन, जयपुर २७-७-५५ Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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